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Kabir Das Dohas In Hindi

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Kabir Das Dohas In Hindi

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Presentation Transcript


  1. कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे भाव सहित

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  3. गुरू गोविन्द दोऊ खङे का के लागु पाँव।बलिहारी गुरू आपने गोविन्द दियो बताय ।। • अर्थ : संत कबीर जी कहते हैं कि गुरू और गोबिंद अर्थात शिक्षक और भगवान जब दोनों एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को ?उनका कहना है कि ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना ही उत्तम है क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है अर्थात गुरु की कृपा से ही भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

  4. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। • अर्थ : इस दोहे के माध्यम से कबीर कहते कि जब मैं इस संसार में बुराई खोजने के लिए  निकला तो मुझे कोई बुरा दिखाई न दिया और जब मैंने मनरुपी द्वार अर्थात अपने हृदय में झाँककर देखा तो मुझे प्रतीत हुआ कि मुझसे बुरा तो इसमें कोई है ही नहीं।

  5. तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय,कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय। • अर्थ : कबीर जी कहते हैं कि हमे एक छोटे से तिनके की भी निंदा नही करनी चाहिए जो हमारे पांवों के नीचे दब जाता है। क्योकि अगर वही तिनका उड़ते हुए हमारी आँख में पड़ जाये तो बहुत गहरी पीड़ा पहुँचता है।

  6. बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।हिये तराजू तौल‍ि के, तब मुख बाहर आनि।। • अर्थ : कबीर जी कहते है कि सही तरीके से बोलने वाला इंसान जानता है कि वाणी कितना अनमोल रत्न है इसलिए वह पहले वाणी को अपने हृदय रुपी तरुजू में तोलता है और फिर मुँह से बाहर निकालता है।

  7. दोस पराए देख‍ि करि, चला हसंत हसंत।अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।। • अर्थ : महान कवि कबीर जी कहते है कि मनुष्य का ऐसा स्वभाव है कि दूसरों में दोष देखकर वह बहुत खुश होता है और उन पर हँसता है और अपने दोष उसे याद नहीं आते इनका कोई अंत ही नहीं है।

  8. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान।कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान। • अर्थ : इस दोहे से कबीर कहना चाहते है कि पेड़ अपना फल खुद नहीं खाते और न ही तालाब अपना पानी खुद पीते है और सज्जन व्यक्ति वही है जो दूसरों की भलाई के लिए अपनी संपत्ति को संचित करता है।

  9. बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोले बोल।रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मम मोल॥ • अर्थ : कबीर जी का कहना है कि जो लोग सच में बड़े होते है वो कभी अपनी बड़ाई नहीं किया करते और न ही अपने मुँह से बड़े बड़े बोल बोलते है वे कहते है कि हीरा कब कहता है कि उनका मोल लाख टके का है।

  10. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय। • अर्थ : कबीर जी का कहना है कि मन में धीरज होना अति आवश्यक है क्योकि सब्र रखने से ही सब कुछ संभव होता है अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे। तब भी फल तो ऋतू आने पर ही होगा।

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