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खून की कमी (एनीमिया)

खून की कमी (एनीमिया) के कारणों में भोजन, कृमी, रक्त कोशिका दोष, जीन डिफेक्ट, ज्यादा खून बह जाना के अलावा आयरन की कमी सबसे बड़ा कारण है. इसको भोजन ठीक करके, कृमी निवारण करके, व आयरन  की गोली या इंजेक्शन द्वारा ठीक किया जाता है . रिसर्च

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खून की कमी (एनीमिया)

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Presentation Transcript


  1. खून की कमी (एनीमिया) के कारणों में भोजन, कृमी, रक्त कोशिका दोष, जीन डिफेक्ट, ज्यादा खून बह जाना के अलावा आयरन की कमी सबसे बड़ा कारण है इसको भोजन ठीक करके, कृमी निवारण करके, व आयरन  की गोली या इंजेक्शन द्वारा ठीक किया जाता है  रिसर्च ICMRमें हाल की  रिसर्च से पता चला है कि यदि भोजन (सर्वोत्तम उपाय) से गर्भावस्था में एनीमिया ठीक न हो तो  रोजाना की बजाय हफ्ते में एक बार ही आयरन की दो गोली  लेने से भी रोजाना गोली के समान खून की बढत व रक्त में समान आक्सीकृत दबाव(oxidative stress )  होता है.

  2. मधुमेह रोग • हॉर्मोन्‍स या शरीर की अन्‍तःस्‍त्रावी ग्रंथियां द्वारा निर्मित स्‍त्राव की कमी या अधिकता से अनेक रोग उत्‍पन्‍न हो जाते है जैसे मधुमेह, थयरॉइड रोग, मोटापा, कद संबंधी समस्‍याऍं, अवॉंछित बाल आना आदि इंसुलिन नामक हॉर्मोन की कमी या इसकी कार्यक्षमता में कमी आने से मधुमेह रोग या डाइबी‍टीज मैलीट्स रोग होता है। • तेजी से बढते शहरीकरण, आधुनिक युग की समस्‍याऍं व तनाव, अचानक खानपान व रहन-सहन में आये परिवर्तन एवं पाश्‍त्‍यकरण (फास्‍ट फूड, कोकाकोला इंजेक्‍शन) प्रचुर मात्रा में भोजन की उपलब्‍धता व शारीरिक श्रम की कमी के कारण  मधुमेह हमारे देश में आजकल तेजी से बढ रहा है। प्रमुख लक्षणः- • वजन में कमी आना। • अधिक भूख प्‍यास व मूत्र लगना। • थकान, पिडंलियो में दर्द। • बार-बार संक्रमण होना या देरी से घाव भरना। • हाथ पैरो में झुनझुनाहट, सूनापन या जलन रहना। • नपूंसकता। • कुछ लोगों में मधुमेह अधिक होने की संभावन रहती है,  जैसे-मोटे व्‍यक्ति, परिवार या वंश में मधुमेह होना, उच्‍च रक्‍तचाप के रोगी, जो लोग व्‍यायाम या शारीरिक श्रम कम या नहीं करते हैं शहरी व्‍यक्तियों को ग्रामीणो की अपेक्षा मधुमेह रोग होने की अधिक संभावना रहती है।

  3. मधुमेह रोग की विकृतियॉः- • शरीर के हर अंग का ये रोग प्रभावित करता है, कई बार विकृति होने पर ही रोग का निदान होता है और इस प्रकार रोग वर्षो से चुपचाप शरीर में पनप रहा होता है। कुछ खास दीर्घकालीन विकृतियॉः- • प्रभावित अंग प्रभाव का लक्षण • नेत्र समय पूर्व मोतिया बनना, कालापानी, पर्दे की खराबी(रेटिनापैथी) व अधिक खराबी होने पर अंधापन। • हदय एवं धमनियॉ हदयघात (हार्ट अटैक) रक्‍तचाप, हदयशूल (एंजाइना)। • गुर्दा मूत्र में अधिक प्रोटीन्‍स जाना, चेहरे या पैरो पर या पूरे शरीर पर सूजन और अन्‍त में गुर्दो की कार्यहीनता या रीनल फैल्‍योर। • मस्तिष्‍क व स्‍नायु तंत्र उच्‍च मानसिक क्रियाओ की विकृति जैसे- स्‍मरणशक्ति, संवेदनाओं की कमी, चक्‍कर आना, नपुंसकता (न्‍यूरोपैथी), लकवा। • निदानः- • रक्‍त में ग्‍लूकोस की जॉंच द्वारा आसानी से किया जा सकता है। सामन्‍यतः ग्‍लूकोस का घोल पीकर जॉंच करवाने की आवश्‍यकता नही होती प्रारंभिक जॉंच में मूत्र में ऐलबूमिन व रक्‍त वसा का अनुमान भी करवाना चाहिए।

  4. उपचारः- मात्र रक्‍त में ग्‍लूकोस को कम करना मधुमेह का पूर्ण उपचार नहीं है उपयुक्‍त भोजन व व्‍यायाम अत्‍यंत आवश्‍यक है। कुछ प्रमुख खाद्य वस्‍तुऍं ज्रिन्‍हे कम प्रयोग में लाना चाहिए। नमक, चीनी, गुड, घी, तेल, दूध व दूध से निर्मित वस्‍तुऍं परांठे, मेवे, आइसक्रीम, मिठाई, मांस, अण्‍डा, चॉकलेट, सूखा नारियल खाद्य प्रदार्थ जो अधिक खाना चाहिए। हरी सब्जियॉं, खीरा, ककडी, टमाटर, प्‍याज, लहसुन, नींबू व सामान्‍य मिर्च मसालों का उपयोग किया जा सकता है। आलू, चावल व फलों का सेवन किया जा सकता है। ज्‍वार, चना व गेहूं के आटे की रोटी (मिस्‍सी रोटी) काफी उपयोगी है सरसों का तेल अन्‍य तेलों (सोयाबीन, मूंगफली, सूर्यमुखी) के साथ प्रयोग में लेना चाहिए भोजन का समय जहॉं तक संभव हो निश्चित होना चाहिए और लम्‍बे समय तक ‍भूखा नही रहना चाहिये। भोजन की मात्रा चिकित्‍सक द्वारा रोगी के वजन व कद के हिसाब से कैलोरीज की गणना करके निर्धारित की जाती है। करेला,  दाना मेथी आदि के कुछ रोगियों को थोडा फायदा हो सकता है उपचार का दूसरा पहलू है व्‍यायाम- नित्‍य लगभग 20-40 मिनट तेज चलना, तैरना साइकिल चलाना आदि पर पहले ये सुनि‍श्‍चित करना आवश्‍यक है कि आपका शरीर व्‍यायाम करने योग्‍य है कि नहीं है। योगाभ्‍यास भी उपयोगी है। बिल्‍कुल खाली पेट व्‍यायाम नहीं करना चाहिए। भोजन में उपयुक्‍त परिवर्तन व व्‍यायाम से जहॉं एक ओर रक्‍त ग्‍लूकोस नियंत्रित रहता है वहीं दुसरी ओर शरीर का वजन संतुलित रहता है ओर रक्‍तचाप नियंत्रण में मदद भी मिलती है।

  5. दवाऍः- • बच्‍चों में मधुमेह का एकमात्र इलाज है इंसुलिन का नित्‍य टीका। वयस्‍को में गोलियों व टीके का उपयोग किया जा सकता है। ये एक मिथ्‍या है कि जिसे एक बार इंसुलिन शुरू हो गयी है उसे जिन्‍दगी भर ये टीका लगवाना पडेगा गर्भावस्‍था में इन्‍सुलिन ही एक मात्र इलाज है। • विकसित देशों में मधुमेह के स्‍थायी इलाज पर खोज जारी है और गुर्दे के प्रत्‍यारोपण के साथ-साथ पैनक्रियास प्रत्‍यारोपण भी किया जा रहा है, हालांकि ये अभी इतना व्‍यापक और कारगर साबित नहीं हुआ है। मधुमेह रोगियो को क्‍या सावधानियॉं बरतनी चाहिएः- • नियमित रक्‍त ग्‍लूकोस, रक्‍तवसा व रक्‍त चाप की जॉंच। • निर्देशानुसार भोजन व व्‍यायाम से संतुलित वजन रखें। • पैरो का उतना ही ध्‍यान रखें जितना अपने चेहरे का रखते हैं क्‍योंकि पैरो पर मामूली से दिखने वाले घाव तेजी से गंभीर रूप ले लेते हैं ओर गैंग्रीन में परिवर्तित हो जाते हैं जिसके परिणाम स्‍वरूप पैर कटवाना पड सकता है। • हाइपाग्‍लाइसिमिया से निपटने के लिए अपने पास सदैव कुछ मीठी वस्‍तु रखें, लम्‍बे समय तक भूखे न रहें। • धूम्रपान व मदिरापान का त्‍याग। • अनावश्‍यक दवाओं का उपयोग न करें। • अचानक दवा कभी बन्‍द न करें। 

  6. गर्भावस्था में शुगर की बीमारी लक्षण: कुछ ख़ास नहीं होते, खून की जांच से १२ से २४वेहफ्ते में ही पता चलता है ख़तरा कब बढ़ता है: जब माँ की उम्र व BMI २५ से ज्यादा,  खानदान मे शुगर की बीमारी, मूत्र शुगर बड़ी हो, पहला बच्चा चौड़े मुहं का हुआ हो, पहले बिना किसी कारन के गर्भपात हुआ हो, पहले भारी वजन का बच्चा हुआ हो. गर्भावस्था में क्यों होती है शुगर की बीमारी: हमारे शरीर में जो इंसुलिन बनता है, उसी से शुगर पचती है. diabetes की महिला का इंसुलिन खून की शुगर शरीर द्वारा पचवा नहीं पाता, जिससे खून में शुगर के मात्रा  बढ़ती जाती है.

  7. इंसुलिन अपना काम क्यों नहीं कर रही ? •  गर्भावस्था में नोर्मल से तीन गुना ज्यादाइंसुलिन माँ को चाहिए क्योंके खरियाई (प्लासेन्टा) की हारमोन इंसुलिन के प्रभाव को कम करता है.  ज्यादातार महिलाओं में तो यह संतुलन बन जाता है लेकिन ४-१६ % त़क महिलाओं को २०-२४वे हफ्ते में पता चलता है कि संतुलन बना नहीं और  diabetes  हो गई. 

  8. गर्भावस्था में बढ़ीशुगर से ख़तरा : • माँ को कम दिन का बच्चा,  ओपरेशन की नौबत,  BP का बढ़ जाना, आगे चल कर पूरा शुगर मरीज बन जाना, बच्चे को मोटापे का शिकार होना,  कुछ आनुवांशिक विकृती होना,  जन्म के समय कम या ज्यादा शुगर होना,  फेफड़े कीकमजोरी,  अकाल मृत्यु

  9. बचाव : • १२ से २४वे हफ्ते में खून में शुगर जांच करवा कर यदि २ घंटे भोजन्प्रांत शुगर १५०मिलीग्रामसे ज्यादा निकले तो खानपान, कसरत व दवा के नियमानुसार पालन,  तनाव मुक्त मन व  पूरे गर्भ काल  में १०-१२ किलो  वजन बढ़ोतरी रखने से नुक्सान को कम किया जा सकेगा.

  10. रिसर्च • शुगर की बीमारी पर ICMR की रिसर्च से पता चला है कि भारतीय इसके शिकार आसानी से बन सकते हैं. लेकिन मरीज को समस्या का ज्ञान हो, योग, ध्यान का अभ्यास हो, व सही इलाज हो, खान पान ठीक हो तब  इससे दिल, किडनी, आंखों, व  नसों  के बिगड़ने के ख़तरा कम होगा.  शुगर की नियमित जांच आसान हो जाये इसके लिए अभी ICMR के प्रयास से कम  लागत की जाँच योजना चालू की गई और अब बिना सुई चुभाये कम लागत मे जांच हो जाए इसके लिए देसी तकनीक पर रिसर्च का काम हो रहा है.  जीन व इस्तेमाल लायक मार्कर्स पर भी काम चालू है.   

  11. अविवाहित माँ का बच्चा अवांछित होने से पुरी तरह विकसित न होकर, कमजोर बना रहता है और कई बार गिरा दिया  जाता है, गर्भपात के खतरे माँ को आजीवन झेलने पड़ते है, यदि अधुरा गर्भ गिरा तो बच्चा विकृत पैदा होता है

  12. नशे की लत की पहचान • विभिन्‍न प्रकार के नशीले प्रदार्थो का व्‍यसन  करने वाले लोगों की पहचान करना आवश्‍यक है ताकि स्‍वयं को तथा परिवार समाज को दुष्‍प्रभाव से बचाया जा सकें। कुछ विन्‍दुओं को ध्‍यान- • सप्‍ताह में चार या अधिक दिनों तक नशीले द्रव्‍यों का सेवन। • नशीले प्रदार्थ के सेवन की मात्रा में वृद्वि। • निश्चित प्रदार्थ को नहीं लेने पर शारीरिक व मानसिक कष्‍ट व पुनः लेने की तीव्र इच्‍छा। • जेबखर्च में बढोतरी अथवा घर से कीमती सामान गायब होने लगना। • व्‍यवहार में परिवर्तन-कार्य में अरूचि,  अनुपस्थिति, खेलकूद  में अरूचि, अन्‍तर्मुखी हो जाना विद्यालय या कॉलेज में अनुपस्थिति या वहॉं से भाग जाना घर के लोगों के प्रति उदासीन हो जाना तथा स्‍थान पर लम्‍बे समय तक बैठे रहना एवं अधिक गुस्‍सैल व झगडालू हो जाना।

  13. विद्यार्थियों में पढाईमें अरूचि, पढाई का स्‍तर कम हो जाना, घर में पढते समय एक ही पृष्‍ठ लम्‍बे समय पर खुला रहना। नयें-नयें मित्रों का निश्चित समय पर घर आना-अधिक खर्च की मॉंग व पैसा नहीं मिलने पर उतेजित व आक्रामक हो जाना। शराब की गंध छिपाने के लिये सुगंधित प्रदार्थो को चबाते रहना (गुटका, पराग, बहार इत्‍यादि)। चाल में लडखडाहट, बोलने में तुतलाहट अथवा हकलाहट आ जाना। जीवन शैली में परिवर्तन आ जाना,  निद्रा में अनियमितता, स्‍नान आदि नहीं करना, भूख कम लगना। शरीर व बॉंहों पर इंजेक्शन के ताजा निशान अथवा सूजन। आंखों का लाला हो जाना, आंखे बुझी सी रहना खों के नीचे सूजन व आंख की पुतली सुंई की नोक की तरह सिकूड जाना, घर में शयन कक्ष अथवा स्‍नानघर में इंजेक्शन की खाली सिरिंज, सिगरेट के ऊपर वाली एल्‍यूमिनियम की पतली कागज जैसी फाइल का व पतली प्‍लास्टिक की पाइप व धुंये के काले निशान वाले सिक्‍के का मिलना।

  14. वाहन चलाते समय बार-बार दुर्घटना होना। अपराध प्रवृति बढ जाना, जुर्म के लिये पुलिस द्वारा पकडा जाना। स्‍वभाव में अचानक परिवर्तन आ जाना, झूंठ बोलना, उधार लेना, चोरी करना व आसामाजिक गतिविधियों में लिप्‍त हो जाना। उपरोक्‍त बिन्‍दुओं को ध्‍यान में रखने से यह आसान हो जाता है कि हम सन्‍देह करें कि व्‍यक्ति मादक द्रव्‍यों का व्‍यसनी तो नहीं बन रहा है। इस व्‍यक्ति को कम से कम तीन दिन सख्‍त पहरे में घर में रखकर देखा जा सकता है। व्‍यसन बन्‍द करने के परिणाम स्‍वरूप होने वाले शारीरिक व मानसिक लक्षणों के पाये जाने अथवा खून व मूत्र की जांच द्वारा निदान निश्चित हो जाता है।

  15. Want to know more about your health Any concerns, want to discuss? write to us at hashardoi@gmail.com

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