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HinduNidhi.Com महामृयुंजय मं य है महामृयुंजय मं य है इतना खास जािनए इतना खास जािनए इसकी शित, लाभ और इसकी शित, लाभ और वातिवक अथ वातिवक अथ © HinduNidhi.Com
महा मृयुंजय मं, ऋवेद का एक ाचीन लोक है, जो भगवान िशव को समिपत है। यह मं न क े वल मृयु पर िवजय का तीक है बिक जीवन, मृयु और मो क े गहन दशन को भी ितिबंिबत करता है। िहंदू धम म, इस मं को अयंत शितशाली माना जाता है और इसे िविभन HinduNidhi.Com अनुठान म उपयोग िकया जाता है। िनयिमत प से इस मं का जाप करने से यित शारीिरक और मानिसक वाय म सुधार क े साथ-साथ आयािमक िवकास भी ात कर सकता है। ॐ ्यबक ं यजामहे सुगिधं पुिटवधनम् । उवाकिमव बधनान् मृयोमुीय मामृतात् || महामृयुंजय मं, िजसे यंबकम मं भी कहते ह, एक बहुत ही पुराना और पिव मं है। इसे ऋवेद म िलखा गया है। एक ऐसा मं है जो मृयु क े बंधन से मुित िदलाता है। यह मं भगवान िशव क े उस प का यान कराता है जो मृयु पर िवजय ात कर चुका है। ऋवेद म विणत यह मं, यंबकम मं क े नाम से भी जाना जाता है और गायी मं क े साथ, िहंदू धम म सबसे अिधक महव रखता है।
इस मं क े कई नाम और प ह इस मं को िशव क े उग प का संक े त देते हुए द मं, िशव क े तीन ने क े कारण ्यंबकम मं और ाचीन ऋिष शु को दी गई जीवन देने वाली िवा का HinduNidhi.Com एक िहसा होने क े कारण मृयुंजय मं भी कहा जाता है। ऋिष-मुिनय ने इसे वेद का दय माना है। यान और िचंतन क े िलए उपयोग िकए जाने वाले सभी मं म, गायी मं क े साथ इस मं का सबसे महवपूण थान है। यह मं मृयु पर िवजय ात करने और अमरव ात करने क े िलए ाथना करने क े िलए िकया जाता है। मूल मं ॐ ्यबक ं यजामहे सुगिधं पुिटवधनम् । उवाकिमव बधनामृयोमुीय माऽमृतात् || अथ ॐ : यह एक पिव विन है िजसका उपयोग यान और मं जाप म िकया जाता है। ्यबक ं : तीन ने वाले भगवान िशव। यजामहे : हम पूजते ह या आराधना करते ह। सुगिधं : सुगंिधत या सुखद।
पुिटवधनम्: जो पोषण करता है और वृद्िध करता है। उवाकिमव : ककड़ी की तरह। बधनात् : बंधन से। HinduNidhi.Com मृयोमुीय : मृयु से मुत कर। माऽमृतात् : अमरव से नहीं, बिक मृयु से। सरल अथ हे तीन ने वाले भगवान िशव, हम आपकी आराधना करते ह। आप जीवन को सुखद और समृ बनाते ह। जैसे ककड़ी का फल अपने पौधे से अलग हो जाता है, वैसे ही हम भी इस संसार क े बंधन से मुत होकर आपकी शरण म आएं। हम अमरव नहीं चाहते, बिक मृयु क े भय से मुत होना चाहते ह। महामृयुंजय मं का अथ सपूण संसार क े पालनहार, तीन ने वाले िशव की हम अराधना करते ह। जो भगवान िशव संसार म सुगंध फ ै लाते ह, वे हम मृयु क े बंधन से मुत कर द और मो दान कर। महामृयुंजय मं क े अर का अथ िवतृत है। इस मं क े छह अंग होते ह: वण, पद, वाय, चरण, ऋचा और सपूण ऋचा, िजनक े अलग-अलग अिभाय होते ह। ओम ्यबकम मं क े 33 अर ह, जो महिष विशठ क े अनुसार 33 कोिट
देवताओं का ितिनिधव करते ह। इन 33 देवताओं म 8 वसु, 11 द, 12 आिदय, 1 जापित और 1 षट्कर ह। इन 33 कोिट देवताओं की सपूण शितयाँ महामृयुंजय मं म िनिहत होती ह। इस मं का पाठ करने वाला यित दीघायु, िनरोगी, ऐवयवान और HinduNidhi.Com धनवान होता है। महामृयुंजय मं का पाठ करने वाला यित हर दृिट से सुखी और समृद्िधशाली होता है। भगवान िशव की अमृतमयी क ृ पा उस पर िनरंतर बरसती रहती है। अर क े थान और उनक े देवता ि: धुव वसु ाण का सूचक है, जो िसर म िथत है। यम : अवर वसु ाण का सूचक है, जो मुख म िथत है। ब : सोम वसु शित का सूचक है, जो दिण कान म िथत है। कम : जल वसु देवता का सूचक है, जो बाएँ कान म िथत है। य : वायु वसु का सूचक है, जो दिण बाहु म िथत है। जा : अिन वसु का सूचक है, जो बाएँ बाहु म िथत है। म : युष वसु शित का सूचक है, जो दिण बाहु क े मय म िथत है। हे : यास वसु मिणबंध म िथत है। सु : वीरभद द ाण का सूचक है, जो दिण हाथ की उंगिलय क े मूल म िथत है। ग : शुभ द का सूचक है, जो दिण हाथ की उंगिलय क े अग भाग म िथत है।
िधम्: िगरीश द शित का मूल सूचक है, जो बाएँ हाथ क े मूल म िथत है। पु : अजैक पात द शित का सूचक है, जो बाएँ हाथ क े मय भाग म िथत है। िट : अहबुय द का सूचक है, जो बाएँ हाथ क े मिणबंध म िथत है। HinduNidhi.Com व : िपनाकी द ाण का सूचक है, जो बाएँ हाथ की उंगिलय क े मूल म िथत है। ध: भवानीव द का सूचक है, जो बाएँ हाथ की उंगिलय क े अग भाग म िथत है। नम्: कपाली द का सूचक है, जो उ मूल म िथत है। उ : िदपित द का सूचक है, जो य क े घुटने म िथत है। वा: थाणु द का सूचक है, जो य क े टखने म िथत है। : भग द का सूचक है, जो च पाद अंगुिल क े मूल म िथत है। क : धाता आिदय का सूचक है, जो य क े पाद अंगुिलय क े अग भाग म िथत है। िम : अयमा आिदय का सूचक है, जो बाएँ उ मूल म िथत है। व : िम आिदय का सूचक है, जो बाएँ घुटने म िथत है। ब : वण आिदय का सूचक है, जो बाएँ टखने म िथत है। धा : अंशु आिदय का सूचक है, जो बाएँ पाद अंगुिल क े मूल म िथत है। नात् : भग आिदय का सूचक है, जो बाएँ पैर की उंगिलय क े अग भाग म िथत है। मृ : िवववन (सूय) का सूचक है, जो दाएँ पाव म िथत है। यो: दड आिदय का सूचक है, जो बाएँ पाव भाग म िथत है।
मु : पूषा आिदय का सूचक है, जो पीठ म िथत है। ी : पजय आिदय का सूचक है, जो नािभ थल म िथत है। य : वटा आिदय का सूचक है, जो गु भाग म िथत है। मां : िवणु आिदय का सूचक है, जो शित वप दोन भुजाओं म िथत HinduNidhi.Com है। मृ : जापित का सूचक है, जो क ं ठ भाग म िथत है। तात् : अिमत वषट्कार का सूचक है, जो दय देश म िथत है। उपरोत वणन िकए गए थान पर देवता, वसु, आिदय आिद अपनी सपूण शितय सिहत िवराजमान ह। जो ाणी ा सिहत महामृयुंजय मं का पाठ करता है, उसक े शरीर क े अंग- अंग की रा होती है, जहां जो देवता या वसु अथवा आिदय िवराजमान होते ह। मं क े पद की शितयाँ िजस कार मं क े अलग- अलग वणों (अर) की शितयाँ ह, उसी कार अलग-अलग पद की भी शितयाँ होती ह। मं क े पद की शित ्यबकम : ैलोयक शित का बोध कराता है, जो िसर म िथत है। यजा : सुगंधात शित का सूचक है, जो ललाट म िथत है। महे : माया शित का ोतक है, जो कान म िथत है। सुगिधम्: सुगंिध शित का ोतक है, जो नािसका (नाक) म िथत है। पुिट : पुरंिदरी शित का ोतक है, जो मुख म िथत है। वधनम : वंशकरी शित का ोतक है, जो क ं ठ म िथत है।
उवा: ऊवक शित का ोतक है, जो दय म िथत है। क : तदवती शित का ोतक है, जो नािभ म िथत है। िमव : मावती शित का बोध कराता है, जो किट भाग म िथत है। बधानात् : बबरी शित का ोतक है, जो गु भाग म िथत है। HinduNidhi.Com मृयो : मंवती शित का ोतक है, जो उ देश म िथत है। मुीय : मुितकरी शित का ोतक है, जो घुटन म िथत है। मा : माशित सिहत महाकालेश का बोधक है, जो दोन जंघाओं म िथत है। अमृतात : अमृतवती शित का ोतक है, जो पैर क े तलुओं म िथत है। महामृयुंजय मं क े लाभ किलयुग म िशवजी की पूजा सभी कार क े पाप और कट का नाश करने वाली है : “कलौकिलमल वंसक सवपाप हरं िशवम्। येचयित नरा िनयं तेिपवंा यथा िशवम्||” किलयुग म िशवजी की पूजा सभी पाप को हरने वाली है। जो यित िनय िशवजी की आराधना करते ह, वे िशवजी क े समान वंदनीय होते ह। “वयं यजिनत चेव मुेमा सद्गरामवजै :। मयचमा ये भवेद मृयैतरधमा साधन िया||”
जो यित वयं महामृयुंजय मं का जाप करते ह, वे महान पुयामा बनते ह। इस मं का मया म जाप करना मृयु और अय कट से मुित िदलाता है। “देव पूजा िवहीनो य : स नरा नरक ं वजेत। HinduNidhi.Com यदा कथंिचद् देवाचा िवधेया दायािवत||” जो यित देव पूजा से िवहीन ह, वे नरक म जाते ह। अतः िकसी भी कार से, चाहे जैसे भी, ा सिहत देव की पूजा करनी चािहए। “जमचतारा्यौ रगोमृदयुतचैरव िवनाशयेत्।” महामृयुंजय मं का पाठ चार जम तक क े रोग और कट का नाश करता है। किलयुग म क े वल िशवजी की पूजा फल देने वाली है। जो लोग िनय महामृयुंजय मं का जाप करते ह, वे िशवजी क े समान वंदनीय होते ह। वयं य करने से देवता और सद्गु की क ृ पा ात होती है। जो लोग देव पूजा क े िबना रहते ह, वे नरक म जाते ह। अतः ा सिहत देव की पूजा आवयक है। जम और मृयु क े बंधन से मुित क े िलए और रोग, शोक, भय आिद का नाश करने क े िलए यह िविध अयंत भावी है। Read This Online महामृयुंजय मं यों है इतना खास जािनए इसकी शित, लाभ और वातिवक अथ
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