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HinduNidhi.Com दाेय क े 24 गु कौन दाेय क े 24 गु कौन थे जािनए इनसे िमली थे जािनए इनसे िमली िशाएं| िशाएं| © HinduNidhi.Com
भगवान दाेयजी िहंदू धम क े एक मुख देवता ह, िजह िदेव (बा, िवणु और महेवर) का अवतार माना जाता है। वे एक िस पुष, योगी और संत क े प म भी पूिजत ह। वे क ृित से सीखने क े बल समथक थे। उनक े जीवन म 24 गु थे, िजनम से अिधकांश ाक ृितक तव थे। HinduNidhi.Com इनम से क ु छ गु एक क ु ा, एक मधुमखी, एक सप आिद थे। दाेयजी की पूजा िविभन तरीक से की जाती है। उनक े भत मं जाप, यान, हवन आिद करते ह। उनक े मुख योहार म द जयंती और गु पूिणमा शािमल ह। दाेयजी क े 24 गु और उनकी िशाएं (1) पृवी दाेय जी ने पृवी को देखकर धैय और मा की सीख ली। पृवी सभी ािणय क े आघात सहते हुए भी कभी बदला नहीं लेती और न ही ोध करती है। दाेय जी ने समझा िक मनुय को भी पृवी की तरह माशील होना चािहए और दूसर क े िहत म समिपत रहना चािहए। (2) वायु वायु हमेशा गितशील रहती है और अछी-बुरी सभी वतुओं क े संपक म आती है, लेिकन िकसी म िलत नहीं होती। मनुय को भी वायु की तरह िनिलत रहते हुए गितशील रहना चािहए।
(3) आकाश आकाश असीम और अखड है। इससे सीख लेते हुए, मनुय को अपने जीवन को छोटे उेय म बांधने क े बजाय बड़े लय की ाित क े िलए यनशील रहना HinduNidhi.Com चािहए। (4) जल जल वाभािवक प से वछ, मधुर और पिव करने वाला होता है। वह सभी वतुओं को शु और शीतल कर देता है। मनुय को भी जल की तरह शु, मधुरभाषी और दूसर का िहत करने वाला होना चािहए। (5) अिन दाेय जी ने अिन से पिवता की सीख ली। मनुय को शुभ कमों को उेिजत करने और अशुभ कमों को भम करने की वृि होनी चािहए। (6) चंदमा चंदमा की कलाएं घटती-बढ़ती रहती ह। मनुय का भी जीवन ऐसा ही होता है। दाेय जी ने सीखा िक मनुय को साधन की कमी या वृद्िध से भािवत नहीं होना चािहए। (7) सूय
सूय जल को सोखकर वषा क े प म दान करता है। इसी कार, मनुय को भी याग और परोपकार की भावना रखनी चािहए। (8) कबूतर HinduNidhi.Com एक कबूतर की कण कहानी ने भगवान दाेय जी को जीवन का गहरा पाठ िसखाया। मोह-माया क े बंधन म फ ं सा यह कबूतर अपने पिरवार क े ित अयिधक आसत था। एक िदन, िशकारी क े जाल म फ ं सकर, वह अपने ियजन से दूर जाने को मजबूर हो गया। पिरवार क े ित िचंता म याक ु ल, कबूतर ने बार-बार जाल से िनकलने का यास िकया। परतु, िजतना ही वह छटपटाता, उतना ही जाल कसता जाता। अंततः, थककर और हार मानकर, कबूतर ने ाण याग िदए। इस घटना से दाेय जी ने सीखा िक अयिधक मोह-माया मनुय क े िववेक को भिमत कर सकती है। पिरवार और ियजन क े ित ेम वाभािवक है, लेिकन जब यह अयिधक हो जाता है, तो मनुय तकहीन िनणय लेने लगता है। दाेय जी का संदेश है िक हम मोह-माया से मुत रहना चािहए। िकसी की मृयु पर शोक करना वाभािवक है, लेिकन अयिधक िवलाप यथ है। (9) अजगर अजगर से संतोष की िशा िमली। मनुय को भी अपने ारध अनुसार जो ात हो, उसम संतुट रहना चािहए।
(10) समुद समुद वषा और गमी से भािवत नहीं होता। मनुय को भी सांसािरक पदाथों की ाित और ित से अभािवत रहना चािहए। HinduNidhi.Com (11) पितंगा पितंगा दीपक की लौ म जलकर मर जाता है। दाेय जी ने सीखा िक िवषय- भोग क े चकर म पड़ने से ाणी का िवनाश िनिचत है। (12) भरा और मधुमखी भरा िविभन पुप से सार संगह करता है। मनुय को भी सभी शा से उपयोगी तव संगह करना चािहए, लेिकन उनम आसत नहीं होना चािहए। मधुमखी से अयिधक संगह न करने की सीख िमली। (13) हाथी एक ेरक कहानी है हाथी पकड़ने की यह तरकीब। िशकारी जानते ह िक हाथी पश-सुख का लालची होता है। इसिलए, वे ितनक से ढक े गड्डे म कागज की हिथनी खड़ी करते ह। सुंदर हिथनी को देखकर, वातिवक हाथी मोिहत हो जाता है और गड्डे म िगर जाता है। पश-सुख णभंगुर होता है, और इसक े िलए हम असर बड़ी हािन उठाते ह। हाथी जैसा िवशाल जीव भी मोह-माया क े बंधन म फ ं स जाता है। मनुय को पश-इंिदय-सुख का याग करना चािहए, तभी वह
सचा सुख ात कर सकता है। (14) शहद िनकालने वाला पुष अयिधक संचय क े कारण मधुमखी का मधु लुट जाता है। मनुय को भी अिधक HinduNidhi.Com धन का संचय नहीं करना चािहए। (15) िहरण मधुर विन से आक ृ ट होकर िहरण िशकारी का िशकार बन जाता है। मनुय को भी कणिदय-सुख से बचना चािहए। (16) मछली मछली वाद क े चकर म कांटे म फ ं स जाती है। मनुय को भी िजा-वाद की लोलुपता से बचना चािहए। (17) िपंगला वेया िवदेह नगरी म रहने वाली वेया िपंगला प-सौदय क े यापार से जीवनयापन करती थी। इंिदय-सुख की तृित म िलत रहते हुए भी, उसे सची शांित नहीं िमलती थी। एक िदन, िपंगला ने कामुक पुष क े िलए रातरात जागने की बजाय, भगवान क े िलए जागने का िनणय िलया। इस पिरवतन से भािवत होकर, भगवान दाेय ने उसे दशन िदए। उहने
िपंगला को िसखाया िक इस जगत म आशा ही परम दुःख का कारण है। आशा हम मोह-माया म बांधकर रखती है, जबिक िनराशा हम आम-सााकार की ओर ले जाती है। भगवान दाेय जम कथा यहाँ पढ़े। शंकराचाय जी भी इसी तय को वीकार करते ह। वे कहते ह िक बूढ़े यित क े HinduNidhi.Com शरीर म ीणता आ जाने पर भी, वह आशा का याग नहीं करता। उहने मनुय को उपदेश िदया िक वह भौितक सुख की आशा छोड़कर, भगवान की भित म लीन हो जाए। (18) क ु रर पी मांस का टुकड़ा छोड़ने से क ु रर पी को मानिसक शांित िमली। दाेय जी ने सीखा िक सची शांित अपिरगह म है। (19) बालक बालक से भोलेपन और िनदोषता की िशा िमली। (20) क ुं वारी कया क ुं वारी कया ने चूिड़य की आवाज से बचने क े िलए क े वल एक-एक चूड़ी पहनी। दाेय जी ने सीखा िक भीड़ ही अनथ की जड़ है, इसिलए साधक को एकांतवास करना चािहए। (21) बाण बनाने वाला कारीगर
एक कारीगर की तमयता से दाेय जी ने सीखा िक ईवर की आराधना म तमयता क े िबना िसद्िध नहीं िमलती। (22) सांप HinduNidhi.Com सांप को िन :शद सरकते देख, दाेय जी ने मौन रहने की िशा ली। (23) मकड़ी मकड़ी क े जाला बुनने और िबगाड़ने से, दाेय जी को जम-मरण और माया- मोह की समझ िमली। (24) भृंगी कीट भृंगी कीट की तरह, परमामा का सतत् िचंतन करने से मनुय म भी उनक े गुण आने लगते ह। दाेय जी ने भृंगी कीट से यह िशा ली। दाेय जी ने समझा िक शरीर नवर है और इंिदयां अपने-अपने इिछत पदाथों को लेकर आपस म खींचातानी करती रहती ह। इसिलए, मनुय को आलय छोड़कर परम तव की खोज म संलन रहना चािहए। हर िदन पढ़ दाची आरती इसक े पाठ से भगवान दाेय की परम क ृ पा बनी रहती है Read This Online दाेय क े 24 गु कौन थे जािनए इनसे िमली िशाएं|
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