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Masik Shivratri Katha Hindi PDF Download
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HinduNidhi.Com मािसक िशवराि मािसक िशवराि पौरािणक कथा पौरािणक कथा © HinduNidhi.Com
|| मािसक िशवराि पौरािणक कथा || धािमक पौरािणक कथा क े अनुसार िचभानु नामक एक िशकारी था। जानवर की हया करक े वह अपने पिरवार को पालता था। वह एक साहूकार का कजदार था, HinduNidhi.Com लेिकन उसका ऋण समय पर न चुका सका। ोिधत साहूकार ने िशकारी को िशवमठ म बंदी बना िलया। संयोग से उस िदन िशवराि थी। िशकारी यानमन होकर िशव-संबंधी धािमक बात सुनता रहा। चतुदशी को उसने िशवराि वत की कथा भी सुनी। शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने क े िवषय म बात की। िशकारी अगले िदन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी िदनचया की भांित वह जंगल म िशकार क े िलए िनकला। लेिकन िदनभर बंदी गृह म रहने क े कारण भूख-यास से याक ु ल था। िशकार खोजता हुआ वह बहुत दूर िनकल गया। जब अंधकार हो गया तो उसने िवचार िकया िक रात जंगल म ही िबतानी पड़ेगी। वह वन म एक तालाब क े िकनारे एक बेल क े पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा। िबव वृ क े नीचे िशविलंग था जो िबवप से ढंका हुआ था। िशकारी को उसका पता न चला। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहिनयां तोड़ीं, वे संयोग से िशविलंग पर िगरती चली गई। इस कार िदनभर भूखे-यासे िशकारी का वत भी हो गया और िशविलंग पर
िबवप भी चढ़ गए। एक पहर राि बीत जाने पर एक गिभणी िहरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची। िशकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर य ही यंचा खींची, िहरणी बोली- ‘म गिभणी HinduNidhi.Com हूं। शीघ ही सव क ं गी। तुम एक साथ दो जीव की हया करोगे, जो ठीक नहीं है। म बचे को जम देकर शीघ ही तुहारे सम तुत हो जाऊ ं गी, तब मार लेना।’ िशकारी ने यंचा ढीली कर दी और िहरणी जंगली झािड़य म लुत हो गई। यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने क े वत क ु छ िबव प अनायास ही टूट कर िशविलंग पर िगर गए। इस कार उससे अनजाने म ही थम हर का पूजन भी सपन हो गया। क ु छ ही देर बाद एक और िहरणी उधर से िनकली। िशकारी की सनता का िठकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख िहरणी ने िवनमतापूवक िनवेदन िकया- ‘हे िशकारी म थोड़ी देर पहले ऋतु से िनवृ हुई हूं। कामातुर िवरिहणी हूं। अपने िय की खोज म भटक रही हूं। म अपने पित से िमलकर शीघ ही तुहारे पास आ जाऊ ं गी।’ िशकारी ने उसे भी जाने िदया। दो बार िशकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह िचंता म पड़ गया। राि का आिखरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से लग कर क ु छ बेलप िशविलंग पर जा िगरे तथा दूसरे हर की पूजन भी सपन हो गई। तभी एक अय िहरणी अपने बच क े साथ उधर से िनकली। िशकारी क े िलए यह विणम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने म देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने
ही वाला था िक िहरणी बोली- ‘हे िशकारी म इन बच को इनक े िपता क े हवाले करक े लौट आऊ ं गी। इस समय मुझे मत मारो।’ िशकारी हंसा और बोला- ‘सामने आए िशकार को छोड़ दूं, म ऐसा मूख नहीं। इससे HinduNidhi.Com पहले म दो बार अपना िशकार खो चुका हूं। मेरे बचे भूख-यास से यग हो रहे हगे।’ उर म िहरणी ने िफर कहा- ‘जैसे तुह अपने बच की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। हे िशकारी मेरा िववास करो, म इह इनक े िपता क े पास छोड़कर तुरंत लौटने की िता करती हूं।’ िहरणी का दुखभरा वर सुनकर िशकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने िदया। िशकार क े अभाव म तथा भूख-यास से याक ु ल िशकारी अनजाने म ही बेल-वृ पर बैठा बेलप तोड़-तोड़कर नीचे फ कता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हट-पुट मृग उसी राते पर आया। िशकारी ने सोच िलया िक इसका िशकार वह अवय करेगा। िशकारी की तनी यंचा देखकर मृग िवनीत वर म बोला- ‘हे िशकारी यिद तुमने मुझसे पूव आने वाली तीन मृिगय तथा छोटे-छोटे बच को मार डाला है, तो मुझे भी मारने म िवलंब न करो, तािक मुझे उनक े िवयोग म एक ण भी दुःख न सहना पड़े। म उन िहरिणय का पित हूं। यिद तुमने उह जीवनदान िदया है तो मुझे भी क ु छ ण का जीवन देने की क ृ पा करो। म उनसे िमलकर तुहारे सम उपिथत हो जाऊ ं गा।’ मृग की बात सुनते ही िशकारी क े सामने पूरी रात का घटनाच घूम गया। उसने
सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा- ‘मेरी तीन पिनयां िजस कार िताब होकर गई ह, मेरी मृयु से अपने धम का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उह िववासपा मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। म उन सबक े साथ तुहारे सामने शीघ ही उपिथत होता हूं।’ HinduNidhi.Com िशकारी ने उसे भी जाने िदया। इस कार ात : हो आई। उपवास, राि-जागरण तथा िशविलंग पर बेलप चढ़ने से अनजाने म ही िशवराि की पूजा पूण हो गई। पर अनजाने म ही की हुई पूजन का पिरणाम उसे तकाल िमला। िशकारी का िहंसक दय िनमल हो गया। उसम भगवद्शित का वास हो गया। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपिरवार िशकारी क े सम उपिथत हो गया, तािक वह उनका िशकार कर सक े , िक ं तु जंगली पशुओं की ऐसी सयता, सािवकता एवं सामूिहक ेमभावना देखकर िशकारी को बड़ी लािन हुई। उसने मृग पिरवार को जीवनदान दे िदया। अनजाने म िशवराि क े वत का पालन करने पर िशकारी को मो और िशवलोक की ाित हुई। || मािसक िशवराि पूजा सामगी || पूजा क े िलए एक वछ िशविलंग या िशव की मूित का उपयोग कर। दूध, दही, घी, शहद और चीनी को िमलाकर पंचामृत तैयार कर। यिद उपलध हो तो गंगाजल का उपयोग कर। बेलप, धतूरा, भांग ये भगवान िशव को िय ह। िविभन रंग क े फूल चढ़ाएं।
पूजा क े िलए शु घी का दीपक और धूप जलाएं। ितलक लगाने क े िलए चंदन का उपयोग कर। भोग क े िलए फल, िमठाई आिद। िशव पुराण का पाठ कर। HinduNidhi.Com िशव चालीसा का पाप कर। िशव मं का जाप कर। || मािसक िशवराि पूजा िविध || पूजा शु करने से पहले नान करक े शरीर को शु कर और साफ कपड़े पहन। िशविलंग को एक वछ थान पर थािपत कर और उस पर गंगाजल िछड़क । िशविलंग पर पंचामृत, गंगाजल, दूध और जल से अिभषेक कर। बेलप, धतूरा, भांग, फूल आिद अिपत कर। धूप और दीप जलाएं। भगवान िशव की मं का जाप कर जैसे “ॐ नमः िशवाय”, “महामृयुंजय मं” आिद। भगवान िशव को भोग लगाएं। आरती कर। Read This Online मािसक िशवराि पौरािणक कथा
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