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Shanadar Anaar : Svad Se Bharapur, Swasthy Ka Khajana

Shanadar Anaar hai ek swadpurn aur svaasthyakar phal, jo aapako nahin sirph aanand dega, balki svaasthy ko bhee banae rakhega. svaad se bharapoor, svaasthy ka vaastavik khajaana.<br>

Hakim7
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Shanadar Anaar : Svad Se Bharapur, Swasthy Ka Khajana

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Presentation Transcript


  1. 1 Shanadar Anaar : Svad Se Bharapur, Swasthy Ka Khajana

  2. Shanadar Anaar : svad se bharapur, swasthy ka khajana 2  एक अनार और सौ बीमार’ वाली बात तो आपने सुनी ही ། होगी। इस बात से ही पता चलता है कक अनार ककतना महत्त्वपूर्ण फल है। यह एक ऐसा फल है किसक े बीि बहुत छोटे-छोटे होते हैं। यह बहुत सरलता से पच िाता है और अन्य फलोों की अपेक्षा अत्यकिक तािगी देने का गुर् रखता है। स्वास्थ्यविणक गुर्ोों क े कारर् यह प्राचीन काल से ही अत्योंत उपयोगी फल माना िाता रहा है। मोटे कछलक े में कलपटे हुए अनार क े बहुत से मोती-से दाने अपनी कनराली छटा कदखाते हैं। अतः अनार को उसमें काफी सोंख्या में दाने होने क े कारर् सम्पन्नता का प्रतीक माना िाता है। अनार क े दानोों क े ऊपर लाल भूरे रोंग का गूदा कलपटा रहता है और उसक े बीच में पतली-पतली किल्लियाों अलग-अलग खानोों की तरह उन दानोों की रक्षा करती है।  अनार मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-मीठा, खट्टा और खट्टा-मीठा कमला हुआ। इस प्रकार उसक े स्वाद में कवकभन्नता क े साथ-साथ उसक े गुर्ोों में भी अोंतर आ िाता है।  मीठा अनार बात, कपत्त और कफ आकद तीनोों दोषोों को शाोंत करता है। स्मरर्शल्लि बढाता है। शरीर में स्फ ू कतण और काोंकत पैदा करता है। इससे शरीर पुष्ट होता है। बल और

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  4.  बुल्लि की वृल्लि होती है।  मीठे अनार का एक भेद बेदाना अनार है। वह बहुत मीठा और रसदार होता है। इस मीठे अनार का उपयोग प्रायः खाने क े बाद ‘स्वीट किश’ क े रृप में ककया िाता है।  ऐसा कवश्वास ककया िाता है कक अनार का मूल उत्पकत्त-स्थान अफगाकनस्तान और ईरान है। यह भी पता चला है कक प्रारम्भ में किस बेबीलोकनया में सभ्यता का कवकास हुआ, वहाों क े उद्यानोों में, किन्हें हेंकगगा गािणन कहा िाता है, उस स्थान से भी अनार का सम्बन्ध है। भारत तथा अन्य स्थानोों में भी इसकी उत्पकत्त मानी गई है। रािस्थान क े िोिपुर नामक शहर में तथा उसक े आस-पास क े क्षेत्र में अनार बहुत होता रहा है। गुिरात, महाराष्टर, उत्तर प्रदेश और क ु छ अन्य प्रदेशोों में अनार काफी मात्रा में उत्पन्न ककया िाता है।  अनार की एक कवशेषता यह है कक अनार वृक्ष क े सभी भाग औषकि क े रृप में प्राचीन काल से प्रयोग में आते रहे हैं। भारतीय कचककत्सा का यह मानना रहा है| 4

  5.  कक यह अत्योंत आसानी से पचनेवाला तथा हृदय को शल्लि देनेवाला फल है। यूनानी कचककत्सकोों ने इसे पेट क े रोगोों क े कलए भी अत्योंत उपयोगी माना है। उनका कहना है कक यह पेट क े कवकभन्न भागोों में सूिन दूर करने क े कलए बहुत उपयोगी कसि होता है। हृदय-पीडा को शाोंत करने क े अकतररि पाचक होने क े कारर् यह पेट से मल कनकालने में भी सहायक होता है। पाचन संबंधी रोगोंमें  अनार का रस पाचन-सोंबोंिी रोगोों में बहुत लाभदायक कसि होता है। इसक े प्रयोग से भूख बढती है। आमाशय, कतिी और किगर की दुबणलता में भी अनार का प्रयोग ककया िाता है।  सोंग्रहर्ी, दस्त और उल्लियाों आने पर अनार क े प्रयोग से लाभ होता है। यकद पतले दस्त लगे होों तो अनार का रस थोडा-थोडा लेने से आराम आता है। खट्टा-मीठा अनार पाचन शल्लि को ठीक करक े भूख बढाता है। अनार का रस पीने से रूका हुआ मूत्र सरलता से बाहर आ िाता है। इसक े खाने से आमाशय में भोिन को पचानेवाले रसोों का कनमाणर् होता है। 5

  6. पेट क े कीडे 6  अनार क े रस का प्रकतकदन कनत्य प्रयोग करते रहने से बच्ोों क े पेट क े कीडे आसानी से नष्ट हो िाते हैं।  अनार क े दानोों का रस नक्की चलने पर नाक में िालने से नाक से रि ( खून ) बहना बोंद हो िाता है।  िैसाकक पहले बताया िा चुका है कक अनार तथा उसक े वृक्ष क े सभी भाग प्रयोग में आते हैं। अनार की िड, तने की छाल और इसक े पत्तोों का चूर्ण कवशेष रृप से आोंतोों क े कीडोों को नष्ट करने क े कलए बहुत लाभदायक होता है। अनार क े वृक्ष की िड की छाल को पानी में उबाल कर पीने से पेट क े कीडे िल्दी शाोंत हो िाते हैं। कदन में तीन बार अनार क े िड की छाल का काढा पीने से और रात को सोते समय अरोंिी का तेल दूि में िालकर पीने से एक-दो कदन में ही पेट क े कीडे नष्ट हो िाते हैं। पेट क े अन्य रोगोंमें

  7.  पेट क े अन्य रोगोों में अनार क े दानोों पर काली कमचण और काला नमक िाल कर पीने से पेट-ददण में आराम आता है। पेट का ददण शाोंत होने से वास्तकवक रृप से भूख लगती है और भोिन में रूकच बढती है। मुख्य रोगोंमें  अनार क े फल का कछलका छाया में सुखाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में क ु छ सादा नमक कमलाकर दाोंत साफ करने क े कलए पेस्ट तथा पाउिर क े रृप में इसे इस्तेमाल कर सकते हैं। पेस्ट क े रृप में प्रयोग करना हो तो चूर्ण में थोडा सरसोों का तेल कमलाकर दाोंत साफ करने से दाोंत चमक उठते हैं। िीरे-िीरे इसे उोंगली से मसूढोों पर मलने से मसूढोों की सूिन तथा पीप या रि आकद भी बहना बोंद हो िाता है और मसूढे स्वस्थ रहते हैं।  पायररया दाोंतोों और मसूढोों का प्रमुख रोग है। पायररया में दाोंतोों और मसूढोों क े साच मवाद का आना अनेक रोगोों का कारर् बनता है। अनार की छाल का यह क ृ कम चूर्ण दाोंतोों और मसूढोों से मवाद कनकलना बोंद करता है, इससे मुख शुि रहता है। 7

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  9.  खट्टे अनार से िो अनारदाना बनाया िाता है, उसे पीसकर बनाए गए चूर्ण बािार में अनेक प्रकार क े पैककटोों में कमलते हैं। इस प्रकार का चूर्ण घर में भी बनाया- िा सकता है। काली कमचण, भुना हुआ िीरा, सेंिा नमक और मूोंग क े दाने क े बराबर भुनी हुई हीोंग और 70 ग्राम क े लगभग अनार दाना लेकर इनको बारीक पीस लें। उसमें स्वाद क े अनुसार थोडी चीनी भी कमलाई िा सकती है। इसक े खाने से अरूकच नष्ट होती है।  अनारदाने की चटनी भोिन में रूकच बढाने का एक बहुत अच्छा साथन है। ककसी भी चटनी में अनारदाना एक कवशेष स्वाद पैदा कर देता है तथा भोिन को रूकचकर और पाचक बना देता है। अन्य उपयोग  ‘एक अनार, सौ बीमार’, यह कहावत अनार से रोगोों क े सोंबोंिोों को उिागर करती है। लेककन एक स्वस्थ व्यल्लि क े कलए अनार क ै से स्वास्थ्यविणक कसि हो सकता है, वह इसका प्रयोग क ै से करे, इस सोंदभण में यहाों उसक े क ु छ नये रृप आपक े कलए प्रस्तुत है 9

  10. शांतिदायक रस 10  अनार का रस पीने से ज्वर तथा अन्य रोगोों में कमिोरी क े कारर् लगनेवाली प्यास शाोंत होती है। िैसा कक पहले बताया िा चुका है, इसक े प्रयोग से किगर, कतिी और हृदय को बल कमलता है। गुदे सकिय होकर काम करने लगते हैं। अनार का प्रयोग करते रहने से शरीर में रोग-रोिक क्षमता बढती है। गकमणयोों में अनार का शवणत प्यास और बेचैनी को दूर करता है। अनार का शबबि  अनार का शबणत घर में ही सुकविापूवणक बनाया िा सकता है। अनार का शबणत तथा रस ककसी भी समय पीने से बुखार और अन्य रोगोों में लगनेवाली प्यास और िलन शाोंत रहती है। इसक े अकतररि अनार का उपयोग आइसिीम, िेली आकद बनाने क े काम भी आता है।  प्रक ृ कत ने अनार क े कोमल दानोों की सुरक्षा क े कलए उस पर एक ऐसा मोटा कवच चढा कदया

  11.  है किससे उसकी सुरक्षा 6 महीने से भी अकिक समय तक की िा सकती है। क ों िारी अनार का कछलका ऊपर से कबल्क ु ल सूखा हुआ होता है। परोंतु उसे काटकर िब दाने कनकाले िाते हैं तो वे कबल्क ु ल तािा लगते हैं। उनकी महक और स्वाद मन को मोह लेता है।  इसक े अकतररि अनार का उपयोग खूनी बवासीर तथा मोटापा कम करने क े कलए भी ककया िाता है। मूछाण क े समय अनार लाभदायक होता है। इससे हृदय की िलन और बेचैनी शाोंत होती है।  अनार क े पत्तोों को पीसकर पतली चटनी-सी बनाकर कसर क े गोंि में लगाते रहने से गोंिापन दूर होता है। वहाों िीरे-िीरे बाल आने लगते हैं।  आयुवेद का दाकिमाद्य घृत हृदय रोगोों, बवासीर, कतिी तथा वायु कवकार क े कारर् गुदोों को आराम देता है। शारीररक दुबणलता समाप्त होती है, नेत्र- ज्योकत बढती है। इसकलए कहा गया है कक एक अनार सौ बीमार। अक्सर सैकडोों बीमाररयोों में अनार क े प्रयोग से लाभ उठाया िाता है। Read more… 11

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