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हरि ॐ भारतीय योग विद्या धाम उल्हासनगर शाखा आपका हार्दिक स्वागत करती है. पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला. 27 / 7 / 2014. पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला. प्रवचन क्र. 22 साधन पाद “ अष्टांग योग व यम सूत्र ” 27 TH JULY 2014 मार्गदर्शक : डॉ . जे पी रामनानी. प्रार्थना.
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हरि ॐ भारतीय योग विद्या धाम उल्हासनगर शाखा आपका हार्दिक स्वागत करती है पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला 27/ 7/ 2014
पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला प्रवचन क्र. 22 साधन पाद “अष्टांग योग व यमसूत्र ” 27TH JULY2014 मार्गदर्शक : डॉ. जेपीरामनानी
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 1)“ तपः स्वाध्यायेश्वर-प्रणिधानानि क्रियायोगः ” 2) “ समाधिभावनार्थ: क्लेशतनु-करणार्थश्च ” 3) “ अविद्याSस्मितारागद्वेषा- भिनिवेशाः क्लेशाः ”
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 4) “ अविद्याक्षेत्रमुत्तरेषां प्रसुप्त-तनु-विच्छिन्नो-दाराणाम् ” 5) “ अनित्य-अशुचि-दुःख-अनात्मसु नित्य-शुचि-सुख-आत्मख्याति: अविद्या ” 6) “दृग्दर्शनशक्त्यो एकात्मता इव अस्मिता” 7) “ सुखानुशयी राग: ”
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 8) “ दुःखानुशयी द्वेष: ” 9) “ स्वरसवाही विदुषोSपि तन्वनुबंध: अभिनिवेश: ” OR 9) “ स्वरसवाही विदुषोSपि तथारूढो-Sभिनिवेश: ”
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 10) “ ते प्रतिप्रसवहेया: सूक्ष्मा: ” 11) “ ध्यान-हेयास्त-द्वृत्तय: ” 12) " क्लेश्मूल: कर्माशयो दृष्टादृष्टजन्मवेदनीय: "
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 13) "सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगा:“ 14) " ते हलादपारिताप-फला: पुण्यापुण्य-हेतुत्वात् “ 15) " परिणामताप-संस्कारदु:खै: गुणवृत्तिविरोधातचदुःखमेवसर्वंविवेकिन: “ 16) " हेयं दुःखमना-गतम् "
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 17) "द्रुष्टादृश्ययो:संयोगो हेयहेतु:" 18) “प्रकाशक्रियास्तिथी-शीलं भूतेन्द्रियात्मकं भोगापवर्गार्थं दृश्यम्" 19) " विशेषाविशेष-लिङ्ग्मात्राsलिङ्गानि गुणपर्वाणि " 20) " द्रष्टा दृशिमात्रः शुद्धोऽपि प्रत्ययानुपश्यः "
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 21) " तदर्थ एव दृश्यस्यात्मा " 22) “कृतार्थं प्रति नष्टमप्यनष्टं तदन्यसाधारणत्वात्" 23) “ स्वस्वामिशक्त्यो: स्वरूपोपलब्धिहेतु: संयोग: ” 24) " तस्य हेतु : अविद्या "
QUICK REVISION OF SAADHAN PAAD 25) " तदभावत्संयोगाभावो हानं तद दृशे : कैवल्यम् " 26) " विवेकख्याति: अविप्लवा हानोपाय: " 27) " तस्य सप्तधा प्राण्तभूमि : प्रज्ञा " 28) " योगांग अनुष्ठानाद् अशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्ति: आविवेकख्याते: "
साधन पाद सूत्र क्र. २८ " योगांग अनुष्ठानाद् अशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्ति: आविवेकख्याते: "
साधन पाद सूत्र क्र. २८ सूत्रार्थ : योग के सभी अंगों के अनुष्ठान से अशुद्धिक्षय होने पर ज्ञान की ज्योति जल उठती है विवेक ज्ञान तक
साधन पाद सूत्र क्र. २८ ख्याति = ज्ञान विवेक ज्ञान ये सादे ज्ञान की तुलना से आकाश जितना श्रेष्ठ होता है इसलिए ज्ञान की ज्योत विवेक ज्ञान जितनी बड़ी जल उठती है ऐसा कहा है यानि विवेक ज्ञान प्राप्त होता है
साधन पाद सूत्र क्र. २८ लेकिन ये कब प्राप्त होता है ? अशुद्धिक्षय होने पर
साधन पाद सूत्र क्र. २८ भावना / वासना / अभिलाषा ये सब अशुद्धियां हैं और वो होने तक विवेक ज्ञान होगा नहीं इनके रहते साधा विचार आएगा और वो भावना को पकड़ के वासना पूर्ती के हेतु से ही किया हुआ विचार होगा वासना होगी तो विवेक आएगा नहीं
साधन पाद सूत्र क्र. २८ अभिलाषा होगी तो भी स्वार्थ के सम्बंधित विचार आएंगे विवेक आएगा नहीं और गहराई में विचार किया तो जब तक अस्मिता है तब तक अशुद्धि रहेगी ही कारण वो मूलभूत अशुद्धि है बाकी सब अशुद्धि उसी से पैदा होती हैं
साधन पाद सूत्र क्र. २८ तो सब अशुद्धि तथा उनकी माता अस्मिता ये कैसे गले ? योग के विविध अंगों के अनुष्ठान करने से इस अशुद्धि का क्षय होता है
साधन पाद सूत्र क्र. २८ अनुष्ठान यानि क्या ? सात दिनों में पातंजल योग सूत्र पड़ना यानि अनुष्ठान होगा क्या ? पा.यो. सू याद कर लें और रोज सैकड़ों आवर्तन करना यानि अनुष्ठान होगा क्या ?
साधन पाद सूत्र क्र. २८ अनु + स्था - इस धातु से अनुष्ठान शब्द निर्माण हुआ है स्था = होना / रहना अनु = पीछे पीछे / जोड़ी से किसी एक के पीछे पीछे जोड़ी से चिटक के रहना यानि अनुष्ठान
साधन पाद सूत्र क्र. २८ योग के अंगों के पीछे पीछे जोड़ी से उनको चिटक के रहना यानि अनुष्ठान उन योग के अंगों के अनुसार सतत २४ घंटे आचरण करना यानि अनुष्ठान
साधन पाद सूत्र क्र. २८ ये अनुष्ठान कुछ वर्षों तक किया तो ही अशुद्धि नहीं सी होगी और विवेक ज्ञान जागृत होगा अब प्रश्न उठता है की योग के अंग यानि क्या ? उसका उत्तर अगले सूत्र में देते हैं
साधन पाद सूत्र क्र. २९ " यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान समाधयो: अष्टौ अंगानि "
साधन पाद सूत्र क्र. २९ यम, नियम, आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि ये योगा के आठ अंग हैं
साधन पाद सूत्र क्र. २९ अंग शब्द इसमें बहुत महत्वपूर्ण बहुत लोग टप्पे, स्टेप्स, 8 FOLD YOGA ऐसे शब्द इस्तमाल करते हैं वो सही नहीं
साधन पाद सूत्र क्र. २९ अंग शब्द ज्यादा परिणामकारक है, प्रभावी है और संयुक्तिक है शरीर के अंगों से इनकी तुलना
साधन पाद सूत्र क्र. २९ ये अंग एक दुसरे से जुड़े हुए होते हैं, एक दुसरे को पूरक होते हैं तथा सबकी दिशा (उद्देश्य) एक ही होता है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० " अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रहा यमा: "
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह ये यम हैं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० यम शब्द का उस प्राण हरण करने वाले यम से कोई सम्बन्ध नहीं ये ५ चीजें सामाजिक स्वस्थ रखने के लिए उपयोगी लेकिन पालना व्यक्ति को ही है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० योग का मूल उद्देश्य है कैवल्य - चित्त वृत्ति निरोध वो उद्देश्य व्यक्तिगत है सामाजिक नहीं इस जन्म में इसकी दिशा है सर्वांगीण व्यक्तिमत्व का विकास TOTAL PERSONALITY DEVELOPMENT (TPD)
साधन पाद सूत्र क्र. ३० योग के आठों अंगों का उद्देश्य एक ही है TPD तो अनुष्ठान चल रहा है ये कैसे समजेगा ? TPD पर परिणाम हो रहा है क्या ? नहीं हो रहा यानि कुछ तो चूक है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अहिंसा किसी प्राणी से कभी भी हिंसा न करना यानि अहिंसा इसमें शारीरिक / वाचिक / मानसिक तीनों आती हैं परिपूर्ण अहिंसा पालन अशक्य
साधन पाद सूत्र क्र. ३० पेट की भूख भरने के लिए किसी जीव की हत्या करके खाना अयोग्य तो प्राणी मार के न खाएं तो क्या खाएं ? सब्जियां, फल, फूल उन में भी जीव फिर उन्हें क्यों मारें ? तो फिर क्या खाएं ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० पेड़ों से गिरे फल, पत्ते, फूल खाएं और वो सच्ची अहिंसा हुई डॉ. वर्तक के अनुसार पेड़ों के फल खाने में कोई हिंसा नहीं क्यों ? गाय / भैंस का दूध उनके बच्चों को देने के बाद लेने में कोई हिंसा नहीं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ये सब बताया आहार आदर्श योगियों का है सामान्य लोगों का नहीं अहिंसा का अतिरेक करके सबको ये आहार बताया तो किसी का पेट नहीं भरेगा क्यूंकि लोग ज्यादा खाना कम
साधन पाद सूत्र क्र. ३० इसलिए जग की लोकसंख्या की दृष्टी से मांसाहार आवश्यक अगर ये प्राणी न मारे गए तो इनकी जनसंख्या इतनी बड़ जाएगी कि इंसानों क रहने की जगह नहीं बचेगी जीवों का संतुलन रखने के लिए परमात्मा ने प्राणियों को मांसाहारी बनाया
साधन पाद सूत्र क्र. ३० तो सामान्य लोग मांसाहार करें तो चलेगा लेकिन योगी को नहीं चलेगा उसके दो कारण : १) मांसाहार से वृत्ति तामसी २) प्राणी ह्त्या का पाप लगेगा उसका फल भोगना पडेगा
साधन पाद सूत्र क्र. ३० वर्णों का विचार किया तो क्षत्रियों को जिन्हें लड़ाई लड़नी है तथा शूद्रों को जिन्हें शारीरिक मेहनत करनी है उन्होंने मांसाहार किया तो चलेगा वैश्यों को वर्ज है क्यूंकि मेहनत का काम नहीं जिन्हें आध्यात्मिक प्रगति चाहिए तो कोई भी वर्ण का हो नहीं चलेगा
साधन पाद सूत्र क्र. ३० कुत्ते पर आहार का परिणाम
साधन पाद सूत्र क्र. ३० प्राणी बेचने वाले कैसे पालें अहिंसा ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अब सवाल उठता है कि मच्छर, खटमल, कॉकरोच वगैरह प्राणियों को मारें कि नहीं ? अहिंसा का पालन आत्मज्ञान मिलने के लिए होता है जिस आत्मा का ज्ञान हमें मिला के लेना है वो शरीर में ही बैठा है तथा सब क्रियाएँ घडता है E.G. पाचन, श्वसन, ह्रदय का चलना वगैरह
साधन पाद सूत्र क्र. ३० नींद में इसे मारने का काम आत्मा करती है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० तो जो आत्मा करती है वो ही हमारे मन से निश्चित करके हमने किया तो कोई पाप नहीं क्यूंकि आत्मज्ञान यानि आत्मा को पहचानना इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि हमें तकलीफ देने वाले प्राणियों को अवश्य मारें क्यूंकि वो आत्मा की योजना है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० उसी तरह हमें तकलीफ देने वाले शत्रु को आत्मरक्षण के लिए मारना भी आत्मज्ञान ही है तो आत्मरक्षण के लिए की गयी हिंसा भी अहिंसा ही है इस तरह का अहिंसा का पालन भी अगर हमने किया तो योग में प्रगति होगी
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सत्य सत्य = सत् (है) + य (जो) तो जो है जो घटा है उसे मानना यानी सत्य है अपनी जिन्दगी में जो जो घट्ता है उसे मान्य करना यानी सत्य से चलना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० इसलिये कहा गाया है हमेशा सच बोलें तथा सत्य से आचरण करें लेकिन ये आचरण सर्वसामान्य लोगों को जमता क्यों नहीं क्यूंकि स्वार्थ आड़े आता है स्वार्थ छोड़ा तो सत्याचरण आसान
साधन पाद सूत्र क्र. ३० एक सत्य छुपाने के लिए असत्य का आचरण फिर उसे छुपाने के लिए और एक असत्य ऐसी chain चालु होती है e.g. योगा के वर्ग में किसी दिन न आ पाना लेट उठने के कारण
साधन पाद सूत्र क्र. ३० एक सत्य छुपाने के लिए असत्य का आचरण फिर उसे छुपाने के लिए और एक असत्य ऐसी chain चालु होती है e.g. योगा के वर्ग में किसी दिन न आ पाना लेट उठने के कारण