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मधुर मधुर मेरे दीपक जल. महादेवी वर्मा. महादेवी वर्मा
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मधुर मधुर मेरे दीपक जल महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा महादेवी वर्मा (26 मार्च 1907-12 सितंबर 1987) हिंदी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। 1919 में इलाहाबाद में क्रास्थवेट कालेज से शिक्षा का प्रारंभ करते हुए उन्होंने 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। तब तक उनके दो काव्य संकलन 'नीहार' और 'रश्मि' प्रकाशित होकर चर्चा में आ चुके थे। अपने प्रयत्नों से उन्होंने इलाहाबाद में प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की। इसकी वे प्रधानाचार्य एवं कुलपति भी रहीं। 1932 में उन्होंने महिलाओं की प्रमुख पत्रिका 'चाँद' का कार्यभार सँभाला। 1934 में नीरजा, तथा 1936 में सांध्यगीत नामक संग्रह प्रकाशित हुए। 1939 में इन चारों काव्य संग्रहों को उनकी कलाकृतियों के साथ वृहदाकार में 'यामा' शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उन्होंने गद्य, काव्य, शिक्षा और चित्रकला सभी क्षेत्रों में नए आयाम स्थापित किए। इसके अतिरिक्त उनके 18 काव्य और गद्य कृतियाँ हैं जिनमें 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'शृंखला की कड़ियाँ' और 'अतीत के चलचित्र' प्रमुख हैं। सन 1955 में महादेवी जी ने इलाहाबाद में 'साहित्यकार संसद' की स्थापना की और पं. इला चंद्र जोशी के सहयोग से 'साहित्यकार' का संपादन सँभाला। यह इस संस्था का मुखपत्र था।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद 1952 में वे उत्तर प्रदेश विधान परिषद की सदस्या मनोनीत की गईं। 1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए 'पद्म भूषण' की उपाधि और 1969 में विक्रम विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। इससे पूर्व महादेवी वर्मा को 'नीरजा' के लिए 1934 में 'सक्सेरिया पुरस्कार', 1942 में 'स्मृति की रेखाओं' के लिए 'द्विवेदी पदक' प्राप्त हुए। 1943 में उन्हें 'मंगलाप्रसाद पुरस्कार' एवं उत्तर प्रदेश सरकार के 'भारत भारती' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 'यामा' नामक काव्य संकलन के लिए उन्हें भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' प्राप्त हुआ। उन्हें आधुनिक साहित्य की मीरा के नाम से जाना जाता है।
पाठ प्रवेश ‘ मधुर-मधुर मेरे दीपक जल ’ शीर्षक कविता छायावाद की प्रमुख कवयित्री ‘ महादेवी वर्मा ’ द्वारा रचित है। कवयित्री इस कविता के माध्यम से परमात्मा से मिलन की उत्कट इच्छा व्यक्त करती है। इस कविता में दीपक आस्था का प्रतीक है। कवयित्री अपने आस्था रूपी दीपक को जलाकर अपने प्रियतम (परमात्मा ) का पथ आलोकित करना चाहती है। वह परमात्मा से एकाकार होना चाहती है। वह अपने तन के कण-कण को मोम की भाँति गलाना चाहती है। वह नहीं चाहती कि विश्ववासी प्रभुभक्ति और प्रभुकृपा से वंचित रहें , इसलिए वह अपनी भक्ति और आस्था की रोशनी चारों ओर फैलाना चाहती है ताकि सारा विश्व आस्थावान होकर प्रभुकृपा प्राप्त कर सके। वह प्रकृति के अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत करती है। वह कहती है कि सागर का हृदय , आकाश के अनगिनत तारे और बादल में विद्यमान बिजली सभी प्राकृतिक उपादान भी नित्य प्रति जलते रहते हैं। समस्त विश्ववासी का हृदय भी ईर्ष्या और घॄणा की आग में जलता रहता है , किंतु कवयित्री उन्हें ईश्वर भक्ति का मार्ग दिखाना चाहती है ताकि सबका कल्याण हो।
मधुर मधुर मेरे दीपक जल युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल प्रियतम का पथ आलोकित कर ! कवयित्री के मन में ईश्वर के प्रति अगाध विश्वास है। इसी आस्था और विश्वास के सहारे वह अपने प्रियतम की भक्ति में लीन हो जाना चाहती है। महादेवी जी अपने हॄदय अथवा अंतर्मन में स्थित आस्था रूपी दीपक को संबोधित करती हुई कहती है कि तुम लगातार जलते रहो , हर पल, हर घड़ी , हर दिन , हर समय, युग-युग तक जलते रहो ताकि मेरे परमात्मा रूपी प्रियतम का पथ सदा तुम्हारे प्रकाश से जगमगाता रहे। भाव यह है कि आस्था कभी न टूटे , विश्वास रूपी दीप कभी न बुझे तथा ईश्वर भक्ति के लिए मेरा यह दीप सतत जलता रहे।
सौरभ फैला विपुल धूप बन , मॄदुल मोम-सा घुल रे मॄदु तन ; दे प्रकाश का सिंधु अपरिमित , तेरे जीवन का अणु गल-गल ! पुलक-पुलक मेरे दीपक जल ! अपने मन के बाद , कवयित्री अपने तन की ओर देखती है और कहती है कि ओ मेरे तन ! तू बहुत विशाल धूप बन जा। जिस प्रकार धूप और अगरबत्ती स्वयं जलकर समस्त विश्व को सुगंध से भर देते हैं, ठीक उसी प्रकार मेरा यह शरीर भी विशाल धूप बनकर निरंतर जले और समस्त संसार को अपने सत्कर्मों की सुगंध से भर दे। आगे कवयित्री अपने तन को कोमल मोम के समान बनाकर निरंतर जलते हुए (यानी प्रभुभक्ति करते हुए) अपने अहंकार को पूरी तरह मिटा देने की बात कहती है। इस प्रकार तन रूपी मोम के जलने से और अहंकार के पिघलने से ऐसा प्रकाश का सागर फैले कि जिसमें जीवन का एक-एक अणु के समान अहंकार गलकर समाप्त हो जाए। अरे मेरे विश्वास एवं आस्था रूपी दीपक ! तू प्रसन्नतापूर्वक लगातार जलता रह। इस प्रकार कवयित्री संपूर्ण तन-मन से प्रभु-भक्ति में लीन हो जाना चाहती है।
सारे शीतल कोमल नूतन , माँग रहे तुझसे ज्वाला कण विश्व-शलभ सिर धुनता कहता ‘ मैं हाय न जल पाया तुझ में मिल ’। सिहर-सिहर मेरे दीपक जल ! कवयित्री कह रही है कि आज संपूर्ण विश्व में ईश्वर के प्रति आस्था का अभाव है। यहाँ कवयित्री ने नूतन , शीतल उन प्राणियों को कहा है , जिनके मन में ईश्वर-भक्ति नहीं है और प्रभु की आस्था की चिंगारी नहीं है। इसलिए सारे नए कोमल प्राण आज ईश्वर की आस्था की ज्योति ढूँढ रहे हैं , किंतु कहीं न पाकर वे तुझसे (कवयित्री के विश्वास रूपी दीपक से ) आस्था की चिंगारी माँग रहे हैं ताकि उनके हॄदय में भी ईश्वर-भक्ति और ईश्वर के प्रति आस्था के दीप प्रज्ज्वलित हो जाएँ। आगे कवयित्री कहती है कि यह जग रूपी पतंगा पश्चाताप करता हुआ कहता है कि हाय ! यह मेरा दुर्भाग्य है कि मैं इस प्रेम-भक्ति की लौ में जलकर अपने अहंकार को न मिटा सका। जब तक जीव का अहंकार न मिटता तब तक परमात्मा के साथ जीवात्मा का मिलन नहीं होता। अतः जग रूपी पतंगे को आत्माहुति देने के लिए कवयित्री अपने आस्था रूपी दीपक को सिहर-सिहर जलने के लिए कहती है।
जलते नभ में देख असंख्यक , स्नेहहीन नित कितने दीपक ; जलमय सागर का उर जलता , विद्युत ले घिरता है बादल ! विहँस-विहँस मेरे दीपक जल ! आकाश में अनगिनत तारों को देखकर कवयित्री को ऐसा लगता है कि वे सब स्नेहरहित हैं , उनमें आस्था रूपी तेल नहीं है। वे भी ईश्वर से मिलने को टिमटिमाते हुए जल रहे हैं अर्थात संसार के वे लोग जिनमें ईश्वर के प्रति भक्ति नहीं है। वे स्नेहरहित हैं और ईर्ष्या तथा द्वेष की अग्नि में जल रहे हैं। अपार जलराशि से पूर्ण सागर का जल जब गर्म हो जाता है , तब भाप बनकर बादल बन जाता है अर्थात लोग आज सांसारिक ऐश्वर्य से परिपूर्ण होकर भी अशांत हैं और ईश्वर-भक्ति प्राप्त करने को जल रहे हैं। बादल भी कड़कती बिजली के साथ आकाश में घनघोर घटा के रूप में दिखाई देते हैं। वे भी ईश्वर से मिलने को जल रहे हैं। इस तरह प्रकृति के सभी उपादान ईश्वर से मिलने को अपने में ईश्वर- भक्ति की आग जलाए हुए हैं। इसलिए कवयित्री अपने आस्था रूपी दीपक को हँसते-हँसते जलने को कह रही है क्योंकि सभी जल रहे हैं। उसे किसी मज़बूरी में नहीं जलना है;बल्कि प्रसन्नतापूर्वक जलना है ताकि संसार के अशांत लोगों को परमात्मा का पथ दिखाकर उन्हें परम शांति दिला सकें।
गृहकार्य • कवयित्री की इन कविताओं का अध्ययन करें- • (क) मैं नीर भरी दुख की बदली (ख) जो तुम आ जाते एक बार • इस कविता को कंठस्थ करें तथा कक्षा में संगीतमय प्रस्तुत करें। • महादेवी वर्मा को आधुनिक मीरा कहा जाता है। इस विषय पर जानकारी प्राप्त कीजिए।
प्रस्तुति सीमांचल गौड़ स्नात्तकोत्तर शिक्षक ज .न .वि ., बाघमारा , साउथ गारो हिल्स , मेघालय धन्यवाद !