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हरि ॐ भारतीय योग विद्या धाम उल्हासनगर शाखा आपका हार्दिक स्वागत करती है. पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला. 10 / 8 / 2014. पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला. प्रवचन क्र. 23 साधन पाद “ यम नियम सूत्र ” 10 TH AUGUST 2014 मार्गदर्शक : डॉ . जे पी रामनानी. प्रार्थना. साधन पाद सूत्र क्र. ३०.
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हरि ॐ भारतीय योग विद्या धाम उल्हासनगर शाखा आपका हार्दिक स्वागत करती है पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला 10/ 8/ 2014
पातंजल योग सूत्र प्रवचन माला प्रवचन क्र. 23 साधन पाद “ यमनियमसूत्र ” 10TH AUGUST2014 मार्गदर्शक : डॉ. जेपीरामनानी
साधन पाद सूत्र क्र. ३० " अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य अपरिग्रहा यमा: "
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सत्य सत्य = सत् (है) + य (जो) तो जो है जो घटा है उसे मानना यानी सत्य है अपनी जिन्दगी में जो जो घट्ता है उसे मान्य करना यानी सत्य से चलना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० इसलिये कहा गाया है हमेशा सच बोलें तथा सत्य से आचरण करें लेकिन ये आचरण सर्वसामान्य लोगों को जमता क्यों नहीं क्यूंकि स्वार्थ आड़े आता है स्वार्थ छोड़ा तो सत्याचरण आसान
साधन पाद सूत्र क्र. ३० एक सत्य छुपाने के लिए असत्य का आचरण फिर उसे छुपाने के लिए और एक असत्य ऐसी chain चालु होती है e.g. योगा के वर्ग में किसी दिन न आ पाना लेट उठने के कारण
साधन पाद सूत्र क्र. ३० पतंजलि कहते हैं कि पहले ही बोल दें सत्य और जो परिणाम होंगे उसे भोग लें वो भोगने की हमारी तैयारी नहीं होती इसलिए हम सत्य को छुपाते हैं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सत्य का पालन क्यों करना है ? व्यक्तिमत्व का विकास करने के लिए उस दिशा में प्रगति चाहिए तो १००% सत्य बोलने के सिवाय कोई पर्याय नहीं उसका सतत प्रयास करते रहें
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सत्याचरण ये व्रत है और सिर्फ सत्य बोलना ये व्रत नहीं सत्य को पकड़ के आचरण करना ये व्रत है कभी कभी सत्य बोलना और व सत्याचरण इन दोनों में संघर्ष उत्पन्न होता है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० उस समय अंतिम सत्य क्या है वो परखें तथा उस अनुसार आचरण करें स्वजनों की रक्षा के लिए शत्रु को मारना यही सत्याचरण है महात्मा गांधी ने सिर्फ सत्य बोलना उसे ही सत्य माना e.g. 55 crores
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सत्य के बारे में और बताते हैं लोग कि सत्य अगर अप्रिय हो तो न बोलें जहां अहिंसा और सत्य की आपस में मारामारी हो वहाँ क्या करें ? परिणाम कृति से ज्यादा महत्वपूर्ण
साधन पाद सूत्र क्र. ३० e.g. गाय और कसाई की कहानी
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ये यमों की मारामारी का प्रश्न सामान्य इंसानों की जिंदगी में घटता है जो प्रगत योगी हिमालय में समाधि में बैठे है उनपर लागू नहीं होता इसलिए उन्हें १००% पालन करने में कोई अड़चन नहीं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अस्तेय स्तेय = चोरी करना अस्तेय = चोरी न करना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० हिंसा, असत्य व स्तेय ये तो देश के कायदे से भी गुनाह है तो इसमें नया क्या है पतंजलि ने ये २५०० साल पहले बताये हैं जो आज पाले जा रहे हैं इससे उनका दृष्टापन समझता है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० लेकिन पतंजलि के कायदों में थोड़ा details है जो शासन के कायदों में नहीं सजा का स्थान पतंजलि ने नहीं दिया वो अपने आप होती है शासन के कायदों में सजा होती है लेकिन procedure complicated है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० किसी की चीज बिना उसकी permission के लेना तो चोरी है ही लेकिन योगा में बताया है कि किसी लावारिस वस्तु को जो तुम्हारी नहीं है उसे लेना भी चोरी ही है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० E.g. किसी खाली रस्ते से गुजर रहे हैं और
साधन पाद सूत्र क्र. ३० STORY OF SHIVAJI AND HIS GURU DADAJI KOND-DEV
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ब्रह्मचर्य साधारण अर्थ = स्त्री-पुरुष संबंध टालना डॉ वर्तक जी के अनुसार वो अर्थ बरोबर नहीं उसके दो कारण : १) इस शब्द में स्त्री-पुरुष संयोग-दर्शक धातु नहीं २) महाभारत ग्रन्थ में की गयी ब्रह्मचर्य की चर्चा
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ब्रह्मचर्य महाभारत के दो उदहारण : १) ५ पांडवों का एक द्रोपदी के साथ वन में जाना व ऋषि का पूछना की ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं न ? उसका जवाब हाँ देना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० २) अश्वत्थामा - अर्जुन - ब्रह्मास्त्र
साधन पाद सूत्र क्र. ३० तो प्रश्न उठता है कि ब्रह्मचर्य का सच्चा अर्थ क्या है ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ब्रह्मचर्य = ब्रह्म + चर्य चर्य शब्द में 'चर' ये धातु है उसका अर्थ है आचरण करना तो ब्रह्म को पकड़कर आचरण करना ऐसा उसका सीधा अर्थ है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० तो ब्रह्म के अनुसार स्त्री-पुरुष समागम करना ये ब्रह्मचर्य पालन करने में योग्य रिती से बैठता है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० प्रजोत्पादन के लिए स्त्री-पुरुष समागम करना ये ब्रह्मचर्य पालन करना ही है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० स्वसुख के लिए, शारीरिक भोग के लिए समागम करना ये ब्रह्मचर्य में नहीं बैठता
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सम्भोग करते भी ब्रह्मचर्य का फल कब मिलेगा ? १) केवल एक स्त्री / पुरुष से २) पति-पत्नी के नैतिक बंधन में रखना ३) दोनों की तीव्र इच्छा हो तब रखना ४) प्रजोत्पादन के लिए करना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० इतने कड़क नियम किसलिए ? 1) क्यूंकि सम्भोग से मज्जा-संस्था पर तनाव, उसकी शक्ति कम जिससे बुद्धि मंद 2) सम्भोग के अती से शारीरिक शक्ति कम होती है 3) वीर्य का एक स्थान नेत्र तो नेत्र-दोष निर्माण हो सकते हैं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० इस शक्ति-क्षय टालने के लिए कड़क ब्रह्मचर्य पाला तो ? कभी सम्भोग ही नहीं किया तो क्या होगा ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सम्भोग की वासना दबाते न आयी तो अनाचार घट सकता है अनैतिक सम्बन्ध से अनेक तकलीफें आती हैं जैसे गुप्त रोग, एड्स, किसी को फ़साना, वैर भावना वगैरह इससे अनेक पाप घटते हैं और ब्रह्मविद्या दूर हो जाती है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० ऐसा अतिरेक करने की अपेक्षा विवाह करके वासना को योग्य मार्ग देना ही बरोबर है
साधन पाद सूत्र क्र. ३० भारतीय संस्कृति ने गृहस्थाश्रम निर्माण किया है तथा उसे ही श्रेष्ठ स्थान दिया है वो समाज के स्वस्थ के लिए
साधन पाद सूत्र क्र. ३० शादी करें यां न करें ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अपरिग्रह परिग्रह = सभी बाजू से लेना अपरिग्रह = किसी भी तरफ से कभी न लेना ग्रह ये धातु में लेना ये अर्थ है ग्रहण करना / पकड़ के रखना ऐसा भी अर्थ है परिग्रह = लेना / संचय करना
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अपरिग्रह यानि कहाँ से कुछ भी न लें तथा कुछ भी संचय न करें यह यम सन्यस्त योगियों के लिए ठीक है लेकिन ग्रहस्थाश्रमी साधक क्या करे ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० गृहस्थी को तो संसार करके बच्चों व बीवी को सम्भालना होता है वो अपरिग्रह कैसे साधे ?
साधन पाद सूत्र क्र. ३० उसने संसारपयोगी वस्तु जरूर लेनी चाहिये लेकिन वो सन्मार्ग से प्राप्त करनी चाहिये तथा उसे नजदीक भी रखा तो उसमें मन को उल्जा के न रखें
साधन पाद सूत्र क्र. ३० पूर्वसंचित के अनुसार हमें जो वैभव / संपत्ति मिलनी होगी उसे त्याग के भी उपयोग होता नहीं संपत्ति हमारे पास आयेगी ही तो उस पर विचार करके समय क्यों गवाएं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० अच्छा तो यही है कि अगर हमें संपत्ति मिलती है तो अवश्य लें तथा उसे अच्छे कामों में इस्तमाल करें
साधन पाद सूत्र क्र. ३० संसारी साधकों के लिए अपरिग्रह का मतलब योग्य वस्तु जरूर लें लेकिन उसे पकड़ के न रखें उसके लिए भागदौड़ न करें
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सन्मार्ग से योग्य उतने पैसे कमाएं, बच्चों तथा पत्नी के लिए रखें कम से कम वस्तुएं जो संसार चलाने के लिए आवश्यक वो अवश्य जमा करें लेकिन उससे अलिप्तता रखें
साधन पाद सूत्र क्र. ३० डॉ. वर्तक कहते हैं उन्हें ये साध्य हुआ है तो सब को साध्य हो सकता है e.g. कपड़ों पर व टीवी के कार्यक्रमों पर कोई ध्यान नहीं
साधन पाद सूत्र क्र. ३० संसारी साधक आज के कलयुग में यही अपरिग्रह माने
साधन पाद सूत्र क्र. ३० सच्चे अर्थ में अपरिग्रह पालने वाले योगी को भिक्षा मांग के रहना चाहिये लेकिन आज के जमाने में ये योग्य नहीं