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Kumbh Mela_ Aastha Shakti Aur Mithkon ka Adbhut Sangam

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Kumbh Mela_ Aastha Shakti Aur Mithkon ka Adbhut Sangam

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Presentation Transcript


  1. Kumbh Mela: Aastha Shakti Aur Mithkon ka Adbhut Sangam

  2. कुंभ, दुनिया में सबसे बड़ा लगने वाला धार्मिक मेला है जिसमें विश्वभर से लोग इस उत्सव को देखने और इसका अनुभव करने आते हैं। कल्पना से परे एक ऐसी जगह जहां लाखों लोग एकत्रित होते हैं। भक्ति और आध्यात्मिकता का संगम कुंभ को विशेष बनाता है। पवित्र नदी के किनारे दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सभा का आयोजन होता है। यह वह समय होता है जब जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए लोग मोक्ष प्राप्ति की कामना से कुंभ मेले में एक साथ आते हैं। भगवान के सामने अपना सब कुछ न्योछावर करते हुए मुक्त होने की इच्छा रखते हुए इस मेले में एकत्रित होकर भक्ति भाव के साथ इस उत्सव में शामिल होते हैं। कुंभ मेला संभवत इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण है जहां कथा- कहानियां, मिथकों, आस्था और ज्योतिष एक साथ संबंध बनाते हैं ऎसे में इस मेले के बारे में जानना काफी रोमांचक बनाता है। ये एक त्यौहार से कहीं ज़्यादा है जिसमें मनुष्य खुद की वासनाओं से ऊपर उठते हुए कुछ अलग पाने की इच्छा रखता है। कुंभ मेला सिर्फ़ एक आध्यात्मिक समागम से कहीं ज़्यादा है। यह संतों साधुओं की संस्कृति का उद्गम स्थल भी है। यहां अखाड़ा संस्कृति का जन्म हुआ है। आध्यात्मिकता को मार्शल आर्ट के साथ जोड़ने वाले साधु सन्यासी मठवासी हिंदू धर्म की शक्ति और विशालता का एक मज़बूत प्रमाण भी है। आदि शंकराचार्य जैसे संतों के ज्ञान और तप के प्राचीन सिद्धांतों पर आधारित अखाड़े धर्म के सिद्धांतों की रक्षा के लिए अनुशासन, एकता और साहस के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सिर्फ़ भक्ति नहीं है बल्कि हिंदू संस्कृति का सार भी है जिसका प्रतिनिधित्व साधु संत, भिक्षु कुंभ मेले के दौरान करते हैं।

  3. समुद्र मंथन और अमृत से जुड़ी पौराणिक कथा कुंभ : पृथ्वी पर बारह वर्ष कुंभ मेले की जड़ें समुद्र मंथन Samudra Manthan से जुड़ी हैं जो विशेष कथा को दर्शाता है। क्षीर सागर दूध के सागर का मंथन समय जब देवताओं और राक्षसों ने अमृत पाने की इच्छा से समुद्र का मंथन किया था। जब अमृत कुंभ निकला तो इसे पाने के लिए 12 दिनों और उससे अधिक समय तक देव और दानवों के मध्य युद्ध चला। देव दानव के युद्ध के दौरान चार स्थानों पर अमृत गिरने से तीर्थ स्थलों का निर्माण हुआ इसमें प्रयाग (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक अमृत तीर्थों का जन्म होता है। अमृत स्थान होने के कारण ये हमेशा के लिए पवित्र स्थल बन गए। धार्मिक मान्यता के अनुसार, पृथ्वी में जहां भी कुंभ का आयोजन होता है, वहीं स्वर्ग में भी कुंभ का आयोजन होता है दोनों कुंभ एक साथ हो रहे होते हैं। दोनों स्थानों एक दूसरे को पार करते हैं, जिससे ग्रहों और नक्षत्रों nakshatra के आधार पर शुभ समय बढ़ जाता है और दिव्यता से बढ़ जाता है। स्वर्ग और पृथ्वी दोनों में एक ही समय पर इस स्थिति का निर्माण होने से यह क्षण बहुत ही दुर्लभ होता है।

  4. ज्योतिष: कुंभ की स्थिति ग्रहों की चाल को जानकर ही कुंभ का आयोजन संभव हो पाता है। कुंभ मेले का आयोजन कौन सी जगह पर होगा और कब होगा इस बारे में ज्योतिष से जाना जाता है। इस उत्सव को मनाने वाले प्रत्येक स्थल पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की अलग-अलग स्थितियां होती हैं, जो इस त्यौहार को मनाने के लिए अलग-अलग स्थान के बारे में बताती हैं - उदाहरण के लिए: * नासिक और उज्जैन में कुंभ या सिंहस्थ कुंभ तब आयोजित किया जाता है जब बृहस्पति सिंह राशि या और उन नक्षत्रों में चले जाते हैं। * गुरु का मेष, वृषभ, कुंभ राशि में होना, मकर या मेष राशि में सूर्य की स्थिति का होना और अन्य महत्वपूर्ण ज्योतिषीय स्थिति में प्रयागराज एवं हरिद्वार में इस आयोजन के होने की स्थिति को दर्शाती हैं। ग्रह नक्षत्रों से बनने वाले इस योग को दिव्य द्वारों के खुलने का और इनका बोध कराने वाला माना जाता है। इसके अलावा नदियों का जल अमृत के गुणों से भर जाता है और कुंभ के दौरान स्नान करना kundli dosha कुंडली दोष को दूर करता है, जिससे भक्तों को एक विशेष और असाधारण अनुभव प्राप्त होता है।

  5. कुंभ स्नान अनुष्ठान कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन में समस्याओं का नाश होता है व्यक्ति के पाप नष्ट हो जाते हैं। इस पवित्र स्नान के दौरान शारीरिक रूप से शक्ति का संचार होता है और मानसिक रूप से शांति एवं संतुष्टि का भाव मन में पैदा होता है। कुंभ के दौरान स्नान शक्ति पाने और दिव्यता का अनुभव करने की क्रिया है जो जीवन को उर्जाओं से भर देने वाला होता है। कुंभ स्नान के पश्चात तीर्थयात्री प्रार्थना करने के लिए मंदिरों में जाते हैं भक्ति के परम तत्व को पाते हैं। कुम्भ का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई तो इस संदर्भ में कुछ विशेष दस्तावेज एवं शिलालेखों में इसके बारे में पता चलता है। जानकारों के अनुसार कुंभ का विचार चार हज़ार साल पहले से ही मौजूद रहा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 644 ई. में प्रयाग की यात्रा के बारे में उल्लेख किया है। अपने अभिलेखों में इस बारे में काफी कुछ लिखा था, जिसे उन्होंने अपनी यात्रा में सबसे विशेष आध्यात्मिक प्रथाओं के रूप में स्थान दिया और साथ ही उस समय किए जाने वाले इस पवित्र स्नान परंपरा के रूप में महत्व को बताया है। उन्होंने अपने सामने ऎसे कई लोगों को देखा उन्होंने इस कुंभ की विशेषता और महत्व को उनके सामने प्रस्तुत किया जिससे यह पता चल पाया की ये स्थान और कार्य जीवन को आध्यात्मिक रूप से मजबूती देने वाला है और मुक्ति का साधन बनता है। इतिहास के अनुसार कुंभ के मेलों के द्वारा कई बड़े बदलाव भी देखे गए है। काफी हद तक इस आयोजन ने ऐसे आंदोलनों और संस्थाओं को जन्म दिया है जो बदलाव लेकर आए हैं। मेले के दौरान आध्यात्मिक मेलजोल ने पंडित मदन मोहन मालवीय द्वारा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के निर्माण में योगदान दिया, जिससे भारत के सामाजिक धार्मिक और बौद्धिक पुनर्जागरण में योगदान मिला।

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