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प्रस्तुतकर्ता. संदीप गोयल 3268. शोभित अग्रवाल 3315. मणिकरण कथूरिया 3264. सिद्धांत 3267. गौरव सिद्धड 3235. जतिन अग्रवाल 3259. रोहित शर्मा 3316. रोहित गुप्ता 3299. सुशील जयसवाल 3311. शुभम गर्ग 3271. फाउंडेशन कोर्स : हिंदी. भाषा, साहित्य और सर्जनात्मकता.
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प्रस्तुतकर्ता संदीप गोयल 3268 शोभित अग्रवाल 3315 मणिकरण कथूरिया 3264 सिद्धांत 3267 गौरवसिद्धड 3235 जतिन अग्रवाल 3259 रोहित शर्मा 3316 रोहित गुप्ता 3299 सुशील जयसवाल 3311 शुभम गर्ग 3271
फाउंडेशन कोर्स : हिंदी भाषा, साहित्य औरसर्जनात्मकता पर्यावरणएवंविकास
पर्यावरणएवंविकास पर्यावरण भौतिक वातावरण का द्योतक है। हमारे देश में पर्यावरण सर्वाधिक चर्चित परंतु संकुचितअर्थों में समझा जानेवाला विषय है। आजकल के यान्त्रिक और औद्योगिक युग में इसको दूषण से बचाना अनिवार्य है। सामान्य जीवन प्रक्रिया में जब अवरोध होता है तब पर्यावरण की समस्या जन्म लेती है। मीडिया या संचार माध्यम में प्राकृतिक इतिहास की कथाओं की भरमार इसके लिए उत्तरदायी है। ‘पर्यावरण’ शब्द का अर्थ तक समझने को कोई तैयार नहीं है। इसका सीधा या मतलब है-अपने चारों ओर का वातावरण, आवास में घटनेवाली घटनाएँ। An accent box, click to edit the text inside. An accent box, click to edit the text inside.
क्या हो विकास की परिभाषा सामान्य रूप से बाहरी चमक-दमक को देखकर कह दिया जाता है कि यह क्षेत्र विकास कर रहा है। मान लीजिए किसी महानगर में बहुत सी झुग्गी-झोपडि़यों बनी हैं और महानगर में कार्य करने वाले गरीब मजदूरों को इन सस्ते आवासों में आश्रय मिला हुआ है, क्योंकि इससे महंगी जगह में रहने के लिए पैसा उनके पास नहीं है। एक दिन उनकी झोपडि़यां तोड़ दी जाती हैं। इस स्थान पर एक आलीशान होटल बना दिया जाता है। अब जो भी यहां से गुजरेगा, वह कहेगा कि यह इलाका तो बहुत विकसित हो गया। पर कोई उन मजदूरों से तो पूछकर देखे, जो पहले यहां रहते थे। उनमें से कई बेघर हो गए हैं और फुटपाथ पर सोते हैं। कई बच्चों का स्कूल छूट गया।
जीव-स्वरूप का विकाश लगभग तीन अरब वर्ष पूर्व हुआ। यह विकास बदलते हुए पर्यावरण में जाति-उद्भवन एवं विलोपन के आधार पर हुआ। • मनुष्य ने जिस गति से मशीनीकरण के युग में पैर रखा है तभी से हमारे वातावरण पर बुरा प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगा।वर्तमान
हमारा देश भारत जहाँ पुराने समय में प्रकृति का स्वच्छ स्थान माना जाता था साथ ही प्रकृति की हम पर अपार कृपा थी। • यहाँ पर पेड़-पौधे, वन्य जीव काफी संख्या में पाए जाते थे। • वनों का क्षेत्रफल भी अधिक था लेकिन मानव ने अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर अपने हाथों से जिस बेरहमी से प्रकृति को नष्ट किया है, उसी से प्रदूषण की गम्भीर समस्या उत्पन्न हुई है।
मानव के क्षणिक लाभ के आगे हमारी पवित्र गंगा-यमुना नदी भी नहीं बच पायी। • अतः कहा जा सकता है कि मानव ने जिस तरह प्रकृति या पर्यावरण के ऊपर अपने क्रूर हाथ चलाए हैं उससे प्रकृति तो नष्ट हुई है परन्तु मानव भी सुरक्षित नहीं रह सका। • मानव ने अपने क्रूर हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है। • यह सच है कि मानव जीवन-हेतु साफ-सुथरा पर्यावरण अति आवश्यक है और पर्यावरण प्रकृति का अनुशासन है
विकास के आरम्भिक चरण में कोई भी जीवधारी या मनुष्य सर्वप्रथम प्रकृति के साथ अनुकूल होने का प्रयास करता है, इसके पश्चात् वह धीरे-धीरे प्रकृति में परिवर्तन करने का प्रयास करता है। • परंतु अपने विकास क्रम में मानव की बढ़ती भौतिकवादी महत्वकांक्षाओं ने पर्यावरण में इतना अधिक परिवर्तन ला दिया है कि मानव और प्रकृति के बीच का संतुलन, जो पृथ्वी पर जीवन का आधार है, धाराशायी होने के कगार पर पहुंच गया है। • साथ ही मानव की अदूरदर्शी विकास प्रक्रियाओं ने विनाशात्मक रूप धारण कर लिया है।
मौजूदा विकास की गति और स्वरूप ने पर्यावरणीय संसाधनों के ऊपर भारी दबाव डाला है। • वर्तमान विकास की प्रवृति असंतुलित है एवं पर्यावरण की प्रतिक्रिया उसे विनाशकारी विकास में परिवर्तित कर सकती है। • आज विज्ञान और तकनीक के माध्यम से इंसानी जीवन की बेहतरी के बहाने विकास का जो ताना-बाना बुना जा रहा है, दुर्भाग्य से उसका सबसे बुरा असर मानव सभ्यता की मेरुदंड प्रकृति पर ही पड़ रहा है।
प्रदूषण के कारण • प्रदूषण को बढ़ाने में कल-कारखाने, वैज्ञानिक साधनों का अधिक उपयोग, फ्रिज, कूलर, वातानुकूलन, ऊर्जा संयंत्र आदि दोषी हैं। • वृक्षों को अंधा-धुंध काटने से मौसम का चक्र बिगड़ा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में हरियाली न होने से भी प्रदूषण बढ़ा है।
वायु-प्रदूषण • महानगरों में यह प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चौबीसों घंटे कल-कारखानों का धुआं, मोटर-वाहनों का काला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। • यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है, वृक्षों का अभाव होता है और वातावरण तंग होता है।
जल-प्रदूषण • कल-कारखानों का दूषित जल नदी-नालों में मिलकर भयंकर जल-प्रदूषण पैदा करता है। बाढ़ के समय तो कारखानों का दुर्गंधित जल सब नाली-नालों में घुल मिल जाता है। इससे अनेक बीमारियां पैदा होती है।
ध्वनि-प्रदूषण • मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण चाहिए। परन्तु आजकल कल-कारखानों का शोर, यातायात का शोर, मोटर-गाड़ियों की चिल्ल-पों, लाउड स्पीकरों की कर्णभेदक ध्वनि ने बहरेपन और तनाव को जन्म दिया है।
प्रदूषणों के दुष्परिणाम • उपर्युक्त प्रदूषणों के कारण मानव के स्वस्थ जीवन को खतरा पैदा हो गया है। खुली हवा में लम्बी सांस लेने तक को तरस गया है आदमी। पर्यावरण-प्रदूषण के कारण न समय पर वर्षा आती है, न सर्दी-गर्मी का चक्र ठीक चलता है। सुखा, बाढ़, ओला आदि प्राकृतिक प्रकोपों का कारण भी प्रदूषण है।
अम्लीय वर्षा • अम्लीय वर्षा (Acid Rain), प्राकॄतिक रूप से ही अम्लीय होती है। इसका कारण यह है कि पॄथ्वी के वायुमंडल में सल्फरडाइआक्साइडऔर नाइट्रोजन ऑक्साइडजल के साथ क्रिया करके नाइट्रिक अम्ल और गंधक का तेजाब बन जाता है
वनोन्मूलन • जल चक्रवनोन्मूलन से प्रभावित होता है। पेड़ अपनी जड़ों के माध्यम से भूजल अवशोषित करते हैं और वातावरण में मुक्त कर देते हैं • वनोन्मूलन आमतौर पर मृदा अपरदनकी दर को बढा देती है, क्योंकि प्रवाहकी मात्रा बढ़ जाती है और पेडों के व्यर्थ पदार्थों से मृदा का संरक्षण कम हो जाता है।
ओजोन रिक्तीकरण • ओज़ोन परत समतापमंडल के तापमान को संतुलित बनाए हुए है तथा सूर्य से निकलने वाली हानिकारण पराबैंगनी किरणें को अवशोषित कर ग्रह पर जीवन की रक्षा करता है। • पिछले पचास वर्षों में मनुष्य ने प्रकृति के उत्कृष्ट संतुलन को वायुमंडल में हानिकारक रसायनिक पदार्थों को छोड़कर अस्त-व्यस्त कर दिया है जो धीरे-धीरे इस जीवरक्षक परत को नष्ट कर रहा है।
CO2 में वृद्धि ग्रीनहाउस प्रभाव में वृद्धि वैश्विक तापमान में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग
उपाय • 1.प्लास्टिक बैग के बजाय कपड़ा बैग का प्रयोग करें| प्लास्टिक / कागज / कप मग के बजाय पत्रावली कुल्हाड्स का प्रयोग करें| • 2. शाकाहारी बनें! पर्यावरण को बचाएँ! • 3. घर में कार्बनिक खाद का प्रयोग करें|
उपाय • 4. सोलर वाटर हीटिंग पैनलों, सौर कुकर आदि की तरह सौर उत्पाद का प्रयोग करें| • 5.बाइक के बजाय साइकिलें, कारों के बजाय बाइक का प्रयोग करें. सार्वजनिक परिवहन का अधिक प्रयोग करें| • 6. ऊर्जा कुशल विद्युत उपकरण का उपयोग करें. सीएफएल, एलईडी रोशनी के बजाय नियमित बल्ब का प्रयोग करें| • 7. बिजली के स्वीच को बंद करें जब वो इस्तेमाल में ना हो|
उपाय • 8. इमारतों में वर्षा जल संचयन का उपयोग करें| उपयोग में ना आने लायक पानी को बाग़-वाणी में लगायें| कपड़े धोने के लिए ठंडे पानी का प्रयोग करें| • 9.स्विच करें ग्रीन कारें / बाइक के लिए और जहाँ तक संभव हो पेट्रोल आदि का इस्तेमाल ना करें| • 10. ताज़े फल या सब्जियों का इस्तेमाल करें जो आपके सामने हो, और जहाँ तक संभव हो टीन के डब्बों में पैक भोजन का इस्तेमाल ना करें|
भारतीय वन अधिनियम • भारतीय वन अधिनियम, 1927 मोटे तौर पर पिछले भारतीय वन अधिनियम के आधार पर तैयार किया गया था जो कि ब्रिटिश काल के दोरान कार्यान्वित था। यह उन प्रक्रियाओं को परिभाषित करता है जो किसी क्षेत्र को सुरक्षित वन, संरक्षित वन या ग्राम वन घोषित करती हो। यह जंगल अपराध को परिभाषित करता है, तथा एक आरक्षित वन के अंदर कोनसे कार्य निषिद्ध कृत्यों के अंतर्गत आते है।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार द्वारा 1972 में पारित किया गया था| 1972 से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे| अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है| • यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है| यह जम्मू और कश्मीर जिसका अपना ही वन्यजीव क़ानून है को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है| इसमें ६ अनुसूचिय है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है|
वन (संरक्षण) अधिनियम • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, 25 अक्टूबर 1980 से अस्तित्व में आया । इस अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत, वन भूमि का गैर-वानिकी प्रयोजनों के लिए परिवर्तन करने के लिए केंद्र सरकार की पूर्व स्वीकृति अनिवार्य है। इसलिए राष्ट्र हित और भविष्य की पीढ़ियों के हित में यह अधिनियम वन भूमि के गैर-वानिकी प्रयोजनों के लिए परिवर्तन को विनियमित करता है । इस अधिनियम का मूल उद्देश्य, वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए होने वाले अंधाधुंध परिवर्तनों को विनियमित करना तथा देश की विकासात्मक आवश्यकताओं एवं प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के बीच तालमेल बनाए रखना है । इस अधिनियम के अंतर्गत प्रक्रियाओं को सरल बनाने, विलंब में कमी लाने और अधिनियम को अधिक उपयोगकर्ता अनुकूल बनाने के लिए समय-समय पर दिशानिर्देश जारी किए गए हैं । इसे सुनिश्चित करने के लिए हाल ही में इस अधिनियम के अंतर्गत नए नियम बनाए गए हैं और 10 जनवरी, 2003 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किए गए हैं ।
पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम • पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम 1986 एक व्यापक विधान है इसकी रूप रेखा केन्द्रीय सरकार के विभिन्न केन्द्रीय और राज्य प्राधिकरणों के क्रियाकलापों के समन्वयन के लिए तैयार किया गया है जिनकी स्थापना पिछले कानूनों के तहत की गई है जैसाकि जल अधिनियम और वायु अधिनियम। मानव पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने एवं पेड़-पौधे और सम्पत्ति का छोड़कर मानव जाति को आपदा से बचाने के लिए ईपीए पारित किया गया, यह केन्द्र सरकार का पर्यावरणीय गुणवत्ता की रक्षा करने और सुधारने, सभी स्रोतों से प्रदूषण नियंत्रण का नियंत्रण और कम करने और पर्यावरणीय आधार पर किसी औद्योगिक सुविधा की स्थापना करना/संचालन करना निषेध या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
वन निर्भर समुदाय अधिनियम • वनवासियों को शोषण से बचाने के लिए वन अधिकार मान्यता कानून, 2005 भी बनाया गया। यह कानून वनवासियों के पारंपरिक अधिकार को कानूनी मान्यता देता है। लेकिन इसके लिए जो शर्तें तय की गयी हैं, उन्हें शायद ही कोई वनवासी पूरा कर सके। • इस कारण कानून बनने के बाद भी वन भूमि पर व्यक्तिगत अधिकार हासिल करने के लिये कुछ गिने-चुने आदिवासी ही सामने आए हैं। जंगल पर समाज की निर्भरता और सह-जीवन होने के बावजूद अभी तक वन अधिकार कानून के तहत जंगल पर सामुदायिक अधिकारों की मान्यता हासिल करने के लिये भी अपेक्षित दावे नहीं आए हैं।
Agenda or Summary Layout A second line of text could go here पर्यावरणएवंविकास • उपाय 1 2 4 5 3 7 8 9 6 • क्या हो विकास की • प`रिभाषा • भारतीय वन अधिनियम • वन्यजीव संरक्षण • अधिनियम • प्रदूषण के कारण • प्रदूषणों के दुष्परिणाम • वन (संरक्षण) अधिनियम पर्यावरण (रक्षा) अधिनियम वन निर्भर समुदाय अधिनियम 10