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स्वागतम् B.A (Hons) Hindi Year I HIN 1002Y (1) काव्य सिद्धांत और काव्य विधाएँ. प्रस्तुतकर्ता: विनय गुदारी 07 March 2014. काव्य दोष. “ काव्य के आनन्द का विधायक तत्त्व दोष है। ”. आ. वामन: पददोष पदार्थ दोष वाक्य दोष वाक्यार्थ दोष. आ. मम्मट: शब्द दोष (37) अर्थ दोष (27) रस दोष (10).
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स्वागतम् B.A (Hons) Hindi Year IHIN 1002Y (1)काव्य सिद्धांत और काव्य विधाएँ प्रस्तुतकर्ता: विनय गुदारी 07 March 2014
“काव्य के आनन्द का विधायक तत्त्व दोष है।” • आ. वामन: • पददोष • पदार्थ दोष • वाक्य दोष • वाक्यार्थ दोष
आ. मम्मट: • शब्द दोष (37) • अर्थ दोष (27) • रस दोष (10)
आज की कक्षा में हम निम्नांकित 4 काव्यदोषों का विश्लेषण करेंगे: - • शब्द-दोष • अर्थ-दोष • रस-दोष • वाक्य-दोष
1. शब्ददोष (पददोष) • श्रुतिकटुता • क्रिया अलक च्च्छुस्रवा डसे, परत ही दृष्टि । • च्युतसंस्कृति व्याकरण की संगति के विरुद्ध पदों का प्रयोग • कह न सके कुछ बात प्राण था जैसे छूटता। (लिंगदोष) • अश्लीलता लज्जाजनक, अमंगलसूचक एवं समाज-विरुद्ध शब्दों का प्रयोग
4) ग्राम्यत्व गँवारों की बोली में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का साहित्यिक रचनाओं में प्रयोग 5) किलष्टता जहाँ प्रयुक्त शब्द का अर्थज्ञान कठिनता से होता है। 6) प्रतिकूलवर्णता जहाँ वर्णनीय रस के अनुकूल वर्णों का संयोजन न हो।
2. अर्थ-दोष • अपुष्टार्थ जहाँ प्रतिपाद्य वस्तु की महत्ता को बढ़ाने वाला अर्थ न हो और उसके बिना भी अर्थ में हानि न हो 2. कष्टार्थ जहाँ अर्थ का ज्ञान कठिनता से होता है।
3. पुनरुक्तत्व जहाँ भिन्न-भिन्न शब्दों से एक ही अर्थ दोहराया जाए। • मुक्त द्वार रहते थे, गृह-गृह नहीं अर्गला का था काम नहीं। 4. दुष्क्रम जहाँ क्रम न रखा जाए।
5. व्याहतत्त्व जहाँ किसी पदार्थ का पहले महत्त्व दिखाकर पुन: उसकी हीनता सूचित की जाए। 6. ग्रामयत्व गँवारपन से बात कहना। 7. संदिग्ध जहाँ वक्ता के भाव का निश्चित ज्ञान कथित शब्दों से न हो पाए।
8. प्रसिद्धि-विरुद्ध प्रसिद्धि के विरुद्ध किसी वस्तु का वर्णन करना। • दौड़े हरि रण में लिये कर में वज्र कठोर 9. सहचरभिन्नत्व उत्कृष्ट का निकृष्ट और निकृष्ट का उत्कृष्ट के साथ वर्णन। 10. अश्लीलता जहाँ लज्जाजनक अर्थ का बोध कराने वाले शब्दों का प्रयोग होता है।
3. रसदोष • विभाव और अनुभाव की कष्ट-कल्पना जहाँ यहाँ निश्चित पता नहीं चले कि कौन विभाव और अनुभाव किस रस का है। • उठति, गिरति, गिरि गिरि उठति, उठि उठि गिरि गिरि जाति। कहा कहौं कासों कहौं, क्यों जीवै यह राति।। (पता नहीं शृंगार, करूण अथवा भयानक रस है)
2. परिपंथि रसांगपरिग्रह जहाँ वर्णनीय रस के विरोधी रस की सामग्री का वर्णन कर दिया जाता है। 3. रस की पुन: पुन: दीप्ति पुन: पुन: र्स को उद्दीप्त करने से यह दोष होता है।
4. अंगविस्मृति जहाँ आलम्बन और आश्रय को रस-वर्णन में विस्मृत कर दिया जाए। 5. प्रकृति विपर्यय नायक के गुणों के विपरीत गुणों का वर्णन।
4. वाक्यदोष 1. प्रतिकूलाक्षरता अभीष्ट-रस के प्रतिकूल वर्णों वाली रचना में प्रतिकूलाक्षरता-दोषा होता है। 2. विसन्धि पदों में कठिनता से ज्ञात होने वाली संधि का नियोजन।
3. न्यूनपदता जब किसी वाक्य में अभीष्ट अर्थ की प्राप्ति के लिए अपनी ओर से किसी पद को जोड़ना पड़े। 4. अधिकपदता जहाँ किसी वाक्य में ऐसे पद रखे गए हों जो अनावश्यक हों, जिनके बिना भी अर्थ-संगति में बाधा न आती हो अथवा जो केवल छंदपूर्ति के लिए ही रखे गए हों।
5. कथित दोष जहाँ एक पद पहले कह दिया जाए और पुन: उसे ही अनावश्यक रूप से कहा जाए। 6. प्रसिद्धिहतत्व जहाँ प्रसिद्ध बातों को अप्रसिद्ध या असम्बद्ध बातों से जोड़कर कहा जाए।