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स्वागतम्. B.A (Hons) Hindi Year I. HIN 1002Y (1) Literary Theory & Forms of Literature K. Goodary 05 March 2014. शब्द-शक्ति. विषय-प्रवेश शब्द का महत्त्व शब्द-अर्थ-सम्बन्ध शब्द-शक्ति: परिभाषा शब्द-शक्ति: भेद-रूप विवेचन अभिधा शब्द-शक्ति लक्षणा शब्द-शक्ति व्यंजना शब्द-शक्ति
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स्वागतम् B.A (Hons) HindiYear I HIN 1002Y (1) Literary Theory & Forms of Literature K. Goodary 05 March 2014
शब्द-शक्ति • विषय-प्रवेश • शब्द का महत्त्व • शब्द-अर्थ-सम्बन्ध • शब्द-शक्ति: परिभाषा • शब्द-शक्ति: भेद-रूप विवेचन • अभिधा शब्द-शक्ति • लक्षणा शब्द-शक्ति • व्यंजना शब्द-शक्ति • निष्कर्ष
विषय-प्रवेश • भाषा का महत्त्व (भाव-विचार-अभिव्यक्ति) पदसमूहो वाक्यं अर्थसमाहतौ • पद: वाक्य में प्रयुक्त होने वाले सार्थक शब्द yet प्रत्येक सार्थक शब्दों का समूह वाक्य नहीं बनता। • वाक्य के लिए: • योग्यता • आकांक्षा • आसक्ति
शब्द का महत्त्व शब्दार्थौ सहितौ काव्यम् • किसी विशेष प्रत्यक्ष/ भाव-विचार से संबंधित अर्थ का वाचक • शब्द की शक्ति
शब्द-अर्थ-संबंध • तुलसीदास: गिरा अर्थ जल-बीचि समाचार कहियत भिन्न, न भिन्न । i.e. वाणी (शब्द) और अर्थ पानी और उसकी लहर के समान हैं जो भिन्न कहे जाकर भी भिन्न नहीं हैं। • शब्द की शक्ति उसके अर्थ के प्रकाशन में निहित है।
डॉ. ओमप्रकाश शर्मा: "किसी शब्द का अस्तित्व और महत्त्व उसके द्वारा ज्ञात होने वाले अर्थ पर निर्भर है और वास्तव में शब्द का अस्तित्व ही अर्थ को जन्म देता है। किसी शब्द के उच्चारण और उसके अर्थ के प्रकाशन के मध्य जो एक अप्रत्यक्ष प्रक्रिया होती है वही शब्द की शक्ति कहलाती है। शब्द के अर्थ-बोध द्वारा ही उसके सामर्थ्य का ज्ञान होता है। "
शब्द-शक्ति: परिभाषा • “शब्दार्थ-सम्बन्ध: शक्ति:"(संस्कृत आचार्य) • “शब्द के जिस व्यापार से उसके किसी अर्थ का बोध होता है, उसे शब्द-शक्ति कहते हैं।” • “वाक्य में प्रयुक्त सार्थक शब्द के अर्थ-बोधक व्यापार के मूल कारण को शब्द-शक्ति कहते हैं।”
दूसरे शब्दों में... शब्द में एक अर्थ या कई अर्थ छिपे रहा करते हैं, समय और स्थिति के अनुसार वे विशेष व्यापार या कारण से अर्थ को व्यक्त करते हैं। वे अर्थ हम जिस कारण या व्यापार से ग्रहण करते हैं, उसी को वास्तव में ‘शब्द- शक्ति’ कहा-माना जा सकता है।
क्यों? कठिन है? समझ में नहीं आ रहा है? तो क्या करें फिर? यही तो शब्द की शक्ति है न! आगे उदाहरण देखिए और समझिए...
e.g.“सूर्य अस्त हो गया।” • सामान्य अर्थ: • सूर्य सुबह उदय हुआ था, अब डूब गया है। • लक्षण-व्यापार: • सन्ध्या काल में कुछ लोग विशेष कार्य करने की आदी हैं, जैसे: किसान खेत में काम बन्द अकर देते हैं, भक्त सन्ध्या-वन्दन & आरती करने के, ... • व्यंजक-अर्थ: • क्योंकि अब सन्ध्या हो जाने के कारण अन्धेरा हो गया है, अंत: दीप आदि उपलब्ध साधनों से प्रकाश की व्यवस्था करनी चाहिए।
अब भी नहीं समझे?चलिए, अब इससे भी अधिक आसान उदाहरण प्रस्तुत है...
लक्ष्मी/करिश्मा/संध्या क्या सोच रही है??/ क्या कहना चाहती है? शब्द-शक्ति से इसका क्या संबंध है?
अर्थात... एक ही वाक्य से क्रमश: मुख्य 3 अर्थ ग्रहण किए गए हैं- • सामान्य शब्द-वाचक अर्थ • लक्षणों से प्रकट होने वाला अर्थ • विभिन्न रुचियों से संयत क्रिया-व्यापारों को व्यक्त करने वाला और विशेष व्यंजकतामूलक अर्थ
शब्द-शक्ति: भेद-रूप-विवेचन 3 मुख्य भेद: - • अभिधा • लक्षणा • व्यंजना
शब्द: वाचक लक्षक व्यंजक अर्थ: वाच्यार्थ लक्ष्यार्थ व्यंग्यार्थ इन 3 भेदों के अनुसार, 3 प्रकार के शब्द & 3 प्रकार के अर्थ स्वीकार किए गए हैं: -
1. अभिधा शब्द-शक्ति शब्द की जो शक्ति उसके मुख्य और प्रत्यक्ष स्वभावगत अर्थ को प्रकट करती है,उसे शब्द-शक्ति कहते हैं। इससे व्यक्त अर्थ को सांकेतिक अर्थभी कहा जाता है। अभिधा शब्द-शक्ति से जिसमें साक्षात्-सांकेतिक अर्थ का बोध होता है, वह वाचक-अर्थ है। उसका बोध कराने वाला शब्द: वाचक-शब्द है।
इसे मुख्यार्थ भी कहा जाता है। e.g. • गधा • पुस्तक • कमल
अभिधा शब्द-शक्ति द्वार मुख्यार्थ या सांकेतिक वाच्यार्थ का ज्ञान कराने वाले प्रमुख साधन: • व्याकरण • आप्त-वाक्य (स्मृति, पुराण, इतिहास में कही गई विश्वस्त बात) • व्यवहार या बोलचाल • प्रसिद्ध पद सान्निध्य • वाक्य-शेष • विवरण-व्याख्या
2. लक्षणा शब्द-शक्ति जब काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के मुख्यार्थ या वाच्यार्थ के ग्रहण कर पाने से किसी भी प्रकार की बाधा उपस्थित हो जाए; व्याकरण-कोश और आप्त-वाक्य से प्राप्त होने वाले अर्थ के स्थान पर किसी अन्य अर्थ के ग्रहण करने की आवश्यकता प्रतीत हो तो अभिधा शब्द-शक्ति से निकलकर हम लक्षणा शब्द-शक्ति के क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
काव्य-प्रकाश में कहा गया है... मुख्यार्थ बाधे तद्योगो रूढ़ितोउथ प्रयोजनात्। अन्यार्थो लक्ष्यते यत्सा लक्षणारोपिता क्रिया।। i.e. मुख्यार्थ-सिद्धि में बाधा उपस्थित होने पर, रूढ़ि या प्रयोजन के आधार पर अभिधेयार्थ से सम्बन्ध रखने वाले अन्यार्थ का बोध कराने वाली शक्ति ही ‘लक्षणा’ नामक शब्द-शक्ति है।
लक्षणा शब्द-शक्ति के द्वारा सामान्य, प्रत्यक्ष या सांकेतिक अर्थ नहीं लिया जाता है, बल्कि लक्षणों से प्राप्त होने वाला अर्थ ही प्रमुखत: ग्रहण किया जाता है। यथा: “सूर्य अस्त हो गया।”में अभिधेयार्थ: सूर्य डूब गया। लक्ष्यार्थ: सन्ध्या हो गई।
इसी प्रकार से, अन्य उदाहरण ... वह चौकन्ना हो गया। सामान्य अर्थ: चार कान वाला लक्षणार्थ: सावधान हो जाना वह गधा है। सामान्य अर्थ: जानवर अन्यार्थ: मूर्ख
मुख्यार्थ के बोध होने पर रूढ़ि या प्रयोजन से ही अन्यार्थका जो बोध होता है, वही लक्ष्यार्थ हुआ करता है। इस तरह से लक्षणा के 2 मुख्य भेद हैं: - रूढ़ा लक्षणा शब्द-शक्ति प्रयोजनवती लक्षणा शब्द-शक्ति
(क) रूढ़ा लक्षणा शब्द-शक्ति लक्षणा शब्द-शक्ति के जिस रूप से प्रचलित परम्परा अर्थात रूढ़ि के आधार पर लक्ष्यार्थ या अन्यार्थ का ज्ञान होता है, उसे रूढ़ा लक्षणा या रूढ़ि लक्षणा कहा जाता है।
(ख) प्रयोजनवती लक्षणा शब्द-शक्ति लक्षणा शब्द-शक्ति के जिस रूप के द्वारा मुख्यार्थ किसी विशिष्ट प्रयोजन के कारण बाध होकर लक्ष्यार्थ का बोध कराता है, उस रूप को प्रयोजनवती लक्षणा कहते हैं।
उदाहरण देखिए & समझिए... “शेर शिवा ने अफजल गज को, पल में किया पराजित।” ‘शेर’& ‘गज’ के मुख्यार्थ में बाधा ‘शेर’ का अर्थ प्रयोजन के अनुरूप ‘अत्यधिक वीर’ है & ‘गज’ के लिए ‘विशाल सेना का अधिपति/साम्राज्य का प्रतिनिधि’ ¤¤ प्रयोजन के कारण मुख्यार्थ से भिन्न लक्ष्यार्थ ग्रहण किया गया है।
3. व्यंजना शब्द-शक्ति शब्द से सामान्य या मुख्य-सांकेतिक, लक्ष्यार्थ या लक्षणों से मिलता-जुलता अर्थ तो प्राप्त हुआ करता है, इसके अतिरिक्त भी अर्थ प्राप्त हुआ करता है। वही अर्थ वास्तव में काव्य के क्षेत्र में अपना विशेष महत्त्व एवं प्रभाव रखता है। इस अन्यार्थ की प्राप्ति हमें जिस रूप और शक्ति से हुआ करती है, उसी को सामान्य अर्थों में व्यंजना शब्द-शक्ति कहते हैं।
परिभाषा: व्यंजना शब्द-शक्ति “अभिधा और लक्षणा शब्द-शक्तियों से प्राप्त होने वाले अर्थ के बोध के बाद अन्य अर्थ का बोध जिस शब्द-शक्ति से हुआ करता है, उसे व्यंजना शब्द- शक्ति कहते हैं। दूसरे शब्दों में, शब्द के जिस व्यापार से, उसके ‘मुख्यार्थ’ और ‘लक्ष्यार्थ’ से भिन्न किसी विशेष या गम्भीर- रूढ़ अर्थ का बोध होता है, उसे व्यंजना शब्द-शक्ति कहा जाता है।”
उदाहरण: “सूर्य अस्त हो गया।” व्यंजक या व्यंजना शब्द-शक्ति से इसका अर्थ होगा प्रयोक्ता & श्रोता की रुचि, स्थिति और प्रवृत्ति के अनुसार – अब मुझे दीपक जलाना चाहिए, प्रकाश की व्यवस्था करनी चाहिए, भोजन करना चाहिए, घर जाना चाहिए, पूजा करनी चाहिए ... (विशेषार्थ/व्यंग्यार्थ/ध्वन्यार्थ)
व्यंजना शब्द शक्ति के 2 भेद: - 1. शाब्दी व्यंजना शब्द-शक्ति 2. आर्थी व्यंजना शब्द-शक्ति
(क) शाब्दी व्यंजना शब्द-शक्ति जब काम्य व्यंग्यार्थ या ध्वन्यार्थ किसी विशिष्ट शब्द के प्रयोग पर अवलम्बित होता है। ध्यातव्य है कि कवि द्वारा प्रयुक्त शब्द के स्थान पर उसका समानार्थक शब्द या पर्यायवाचक शब्द कदापि नहीं रखा जाता है।
(ख) आर्थी व्यंजना शब्द-शक्ति जब व्यंग्यार्थ किसी विशेष शब्द पर अवलम्बित न होकर समग्र अर्थ पर ही अवलम्बित रहा करता है। इसमें किसी एक शब्द के स्थान पर उसका समानार्थी शब्द रखा जा सकता है। ऐसा करने से भी प्राय: व्यंग्यार्थ में कोई परिवर्तन नहीं आया करता है।
निष्कर्ष शब्द का प्रयोग अनेक स्थितियों में होता। काव्य में रसात्मकता व चमत्कार लाने-हेतु, व्यंजना शब्द-शक्ति का प्रयोग शब्द की शक्ति पर ही अर्थ प्रकाशित हो पाता है।
धन्यवाद विनय गुदारी की ओर से...